हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ वह दूर हैं शिवालय, शिवका मुझे सहारा ☆ – श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

☆ वह दूर हैं शिवालय, शिवका मुझे सहारा ☆

(प्रस्तुत है श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी की कविता  “वह दूर हैं शिवालय, शिवका मुझे सहारा”। संयोगवश आज ही के अंक में भगवान  शिव जी परआधारित डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव जीकी एक और रचना  “शिवो अहं शिवो अहं शिवो अहं”प्रकाशित हुई है। दोनों ही कविताओं के भाव विविध हैं। दोनों कविताओं के  सम्माननीय कवियों का हार्दिक आभार।)

 

वह दूर हैं शिवालय, शिवका मुझे सहारा

शिव के बिना यहाँ तो, कोई मुझे न प्यारा

 

जा ना सके वहाँ तो, दिल मे उसे बिठाकर

हर साँस को बनालो, शिव नाम एक नारा

 

यह जान धूल मिट्टी, आकार तू बनाया

हर एक आदमी को, तूने किया सितारा

 

कैलाश घर तुम्हारा, दिल में किया बसेरा

जाने कहा कहाँ पर, संसार हैं तुम्हारा

 

कश्ती तुफान में थी, मैंने तुम्हे पुकारा

आँखे खुली खुली थी, था सामने किनारा

 

भगवान दान माँगे, मैने नही सुना था

सजदा किया हमेशा, सौदा किया न यारा

 

© अशोक भांबुरे, धनकवडी, पुणे.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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