हिन्दी साहित्य – ग़ज़ल – डॉ हनीफ

डॉ हनीफ

 

(डॉ हनीफ का e-abhivyakti में स्वागत है। डॉ हनीफ स प महिला  महाविद्यालय, दुमका, झारखण्ड में प्राध्यापक (अंग्रेजी विभाग) हैं । आपके उपन्यास, काव्य संग्रह (हिन्दी/अंग्रेजी) एवं कथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।)

गजल 

देख तस्वीर उनकी, उनकी याद आ गई

छुपी थी जो तहरीर उनकी,उनकी याद आ गई।

 

कहते हैं शीशे में कैद है उनकी जुल्फें

दफ़न हुए कफ़न कल की,उनकी याद आ गई।

 

क़मर छुप गया देख तसव्वुर महक की

खिली धूप में खिली हुई,उनकी याद आ गई।

 

लम्हें खता कर हो गई गाफिल फिर

आरजू आंखों में लिपटी रही,फ़क़त उनकी याद आ गई।

 

तन्हाइयों में भी तन्हा साये में खोई सी

दर्द जब इंतहा से गुजरी,उनकी याद आ गई।

 

खार चुभी जब जिगर में उनके गुजरने की,उनकी याद आ गई।

उनकी यादों के आंचल में हुई परवरिश,क़ज़ा हुई तो उनकी याद आ गई।

 

© डॉ हनीफ