हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #228 – लघुकथा – ☆ वातानुकूलित संवेदना… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा वातानुकूलित संवेदना” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #228 ☆

☆ वातानुकूलित संवेदना… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

एयरपोर्ट से लौटते हुए रास्ते में सड़क किनारे एक पेड़ के नीचे पत्तों से छनती छिटपुट धूप-छाँव में साईकिल रिक्शे पर सोये एक रिक्शा चालक पर अचानक उनकी नज़र पड़ी।

लेखकीय कौतूहलवश गाड़ी रुकवाकर साहित्यजीवी बुद्धिप्रकाश जी उसके पास पहुँच कर देखते हैं –

वह व्यक्ति खर्राटे भरते हुए इत्मीनान से गहरी नींद सोया है।

समस्त सुख-संसाधनों के बीच सर्व सुविधाभोगी,अनिद्रा रोग से ग्रस्त बुद्धिप्रकाश जी को जेठ माह की चिलचिलाती गर्मी में इतने गहरे से नींद में सोये इस रिक्शेवाले की नींद से स्वाभाविक ही ईर्ष्या होने लगी।

इस भीषण गर्मी व लू के थपेड़ों के बीच खुले में रिक्शे  पर धनुषाकार, निद्रामग्न रिक्शा चालक के इस दृश्य को आत्मसात कर वहाँ से अपनी लेखकीय सामग्री बटोरते हुए वे वापस अपनी कार में सवार हो गए और घर पहुँचते ही सर्वेन्ट रामदीन को कुछ स्नैक्स व कोल्ड्रिंक का आदेश दे कर अपने वातानुकूलित कक्ष में अभी-अभी मिली कच्ची सामग्री के साथ लैपटॉप पर एक नई कहानी बुनने में जुट गए।

‘गेस्ट’ को छोड़ने जाने और एयरपोर्ट से यहाँ तक लौटने  की भारी थकान के बावजूद— आज सहज ही राह चलते मिली इस संवेदनशील मार्मिक कहानी को लिख कर पूरी करते हुए बुद्धिप्रकाश जी आत्ममुग्ध हो एक अलग ही स्फूर्ति व उल्लास से भर गए।

रिक्शाचालक पर सृजित अपनी इस दयनीय सशक्त कहानी को दो-तीन बार पढ़ने के बाद उनके मन-मस्तिष्क पर इतना असर हो रहा है कि, खुशी में अनायास ही इस विषय पर कुछ कारुणिक काव्य पंक्तियाँ भी जोरों से मन में हिलोरें लेने लगी।

तो ताजे-ताजे मिले इस संवेदना परक विषय पर कविता लिखना बुद्धिप्रकाश जी ने इसलिए भी जरूरी समझा कि, हो सकता है, यही कविता या कहानी इस अदने से पात्र रिक्शेवाले के ज़रिए उन्हें किसी सम्मानित मुकाम तक पहुँचा कर कल को प्रतिष्ठित कर दे।

यश-पद-प्रतिष्ठा और सम्मान के सम्मोहन में बुद्धिप्रकाश जी अपने शीत-कक्ष में अब कविता की उलझन में व्यस्त हैं।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈