हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य #154 – लघुकथा – “सरकारी बल्ब” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा  “सरकारी बल्ब)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 154 ☆

 ☆ लघुकथा – “सरकारी बल्ब” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

कमल को अपनी पुत्री का नाम कूपन से कटवाना था। वह नगर पालिका में बैठा था। तभी रोहित ने आकर कहा, “साहब! मेरा घर गांव से एक तरफ है। स्ट्रीट लाइट पर बल्ब लगवा दीजिए।” 

यह सुनकर कमल बोला, “साहब! मेरा घर भी वहां पर है। आप बल्ब मत लगाइएगा।”

यह सुनकर सीएमओ साहब ने रोहित के साथ-साथ कहा, “क्यों भाई! क्या बात हैं?”

“साहब, वह वापस फूट जाएगा,” कमल ने कहा तो रोहित बोला, “अजीब आदमी हो। अपने घर की गली में बल्ब लगवाने का मना कर रहे हो।”

सीएमओ साहब ने कमल को देखकर आंखें ऊंचका कर इशारे में पूछा-क्या बात है भाई?

“साहब! इनका पुत्र स्ट्रीट लाइट बल्ब को पत्थर से निशाना लगाकर फोड़ देता है। फिर मेरे जैसा व्यक्ति उनके पुत्र को बल्ब फोड़ने से रोकता है तो ये साहब कहते हैं- आपके बाप का क्या जाता है? सरकारी बल्ब है। फोड़ने दीजिए।”

यह सुनकर रोहित ने गर्दन नीचे कर दी और सीएमओ साहब बारी-बारी से दोनों को देखे जा रहे थे।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

23-09-2023

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