हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 112 ☆ गीत – ।। मैं तो भारत भाग्य विधाता हूँ, मैं इक कर्तव्यनिष्ठ मतदाता हूँ ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆
श्री एस के कपूर “श्री हंस”
☆ “श्री हंस” साहित्य # 112 ☆
☆ गीत – ।।मैं तो भारत भाग्य विधाता हूँ, मैं इक कर्तव्यनिष्ठ मतदाता हूँ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆
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[1]
तू भारत भाग्य विधाता रखता मताधिकार है।
तेरे वोट से ही तो चुनी जातीअच्छी सरकार है।।
मतदान के दिन परम कर्तव्य है यह तुम्हारा।
वोट देकर दिखाना तुझे अपना सरोकार है।।
[2]
मैं भारत भाग्य विधाता हूँ,मैं इक मतदाता हूँ।
वोट से अपने देश की पहचान मैं बनाता हूँ।।
उँगली का काला निशान भाग्य रेखा देश की।
देकर वोट अपना मैं पहला फ़र्ज़ निभाता हूँ।।
[3]
राष्ट्र के उत्थान का मुख्य आधार ही मतदान है।
इसी में निहित तेरा मेरा और सबका सम्मान है।।
वोट की शक्ति जानो और उसका प्रयोग करो।
नहीं वोट देने का अर्थ कि देश प्रेम सुनसान है।।
[4]
वोट उसको दें जो कि स्वप्न साकार करे।
जो हमारे सुख दुःख कोअपना स्वीकार करे।।
लोकतंत्र यज्ञ चुनाव पर्व मेंआहुति परमावश्यक।
दें वोट उसको ही जो जनहित में उद्धार करे।।
[5]
अब हमें शत प्रतिशत ही मतदान चाहिए।
अपने राष्ट्र की विश्व में ऊंची आनबान चाहिए।।
अपने से देश हमको रखना सबसे ऊपर।
बस एकता के रंग में रंगा हिंदुस्तान चाहिए।।
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© एस के कपूर “श्री हंस”
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