हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 174 ☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “गुण बढ़ा नाम जग में कमाना” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “गुण बढ़ा नाम जग में कमाना। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “गुण बढ़ा नाम जग में कमाना” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

सोचो, समझो औ’ मन को टटोलो तुम्हें किस राह जीवन में जाना?

राहें कई हैं जो मन को लुभाती औरों के कहे में तुम न आना ॥1

पहले तौलो तुम्हें क्या है भाता काम क्या लगता तुमको सुहाना।

बनना क्या लगता तुमको है अच्छा रुचि है क्या? माँगता क्या जमाना? ॥2॥

इच्छा घर में सबो की भी क्या है? चाहते वे तुम्हें क्या बनाना?

राय लेके कई अनुभवी की राह में खुद कदम तब बढ़ाना ॥3॥

जिन्दगी एक है बहती सरिता समय के संग जिसे बढ़ते जाना।

जो कि बढ़ जाती जब जितना आगे कठिन होता है फिर लौट पाना ॥4॥

ध्यान रख नर्मदा की विमलता खुद को निर्मल जल जैसा बनना

बनो जिस क्षेत्र में कार्यकर्त्ता गुण बढ़ा नाम अपना कमाना ॥ 5 ॥

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈