हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार # 4 – नवगीत – ऋतुपति… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम रचना – नवगीत – ऋतुपति

? रचना संसार # 4 – नवगीत – ऋतुपति…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

अनुरक्त हुए ऋतुपति को मैं,

पीने को हाला देती हूँ।

कंचनवर्णी इस यौवन को,

मधुरस का प्याला देती हूँ।।

 *

मधुरिम अधरों पर रसासिक्त,

आँखें सुंदर भी  हैं नीली।

यौवन मद में मखमली बदन,

स्वर्णिम आभा नथ चमकीली,

प्रेयसी प्राणदा प्रियतम को,

प्यारी मधुशाला देती हूँ।

 *

कंचनवर्णी इस यौवन को,

मधुरस का प्याला देती हूँ।।

 *

नित मदिर -गीत गाता  यौवन,

बौराती पुलकित तरुणाई।

मैं बँधीं प्रीति की डोरी से,

हूँ बिना पिया के अकुलाई।।।

सिंदूरी माथे को खुश हो,

निज मन मतवाला देती हूँ।

 *

कंचनवर्णी इस यौवन को,

मधुरस का प्याला देती हूँ।।

 *

यौवन का झीना घूँघट पट,

रेशम की अँगिया शरमाती।

अभिसार वल्लरी नित पुष्पित,

है चन्द्र प्रभा सी  मुस्काती।।

प्रिय प्रांजल मूरत प्रांजल को

मैं प्रेमिल प्याला देती हूँ।

 *

कंचनवर्णी इस यौवन को,

मधुरस का प्याला देती हूँ।।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

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