हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 126 – पीर थक कर सो गई है… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “पीर थक कर सो गई है…। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 126 – पीर थक कर सो गई है… ☆

 पीर थक कर सो गई है,

प्रिय उसे तुम मत जगाओ।

हो सके तो थपकियाँ दे,

प्रेम की लोरी सुनाओ।।

 *

वेदनाओं की तरफ से,

अब नहीं आता निमंत्रण।

द्वार से ही लौट जाता,

हो गया दिल पर नियंत्रण।।

 *

अब नहीं संधान करता,

फिर न उसको तुम बुलाओ।

पीर थककर सो गई है,

प्रिय उसे तुम मत जगाओ।।

 *

वक्त कितना था बिताया,

उन मुफलिसी के दौर में,

झूलता ही रह गया था।

तब स्वप्नदर्शी जाल में,

 *

फिर मुझे उस पालने में।

अब नहीं किंचित झुलाओ।

पीर थक कर सो गई है।

प्रिय उसे तुम मत जगाओ ।।

 *

सुख सदा शापित रहा है,

द्वार पर आई न आहट।

आ गया था संकुचित मन

धर अधर पर मुस्कुराहट।

 *

जो विदा लेकर गया फिर,

उस खिन्नता को मत बुलाओ।

पीर थक कर सो गई है।

प्रिय उसे तुम मत जगाओ ।।

 *

पीर होती है घनेरी,

भावनाओं के सफर में।

वर्जनाएँ खुद लजातीं,

अश्रु धारा की डगर में।।

 *

देखने दो पल सुनहरे,

अब दृगों को मत रुलाओ।

पीर थककर सो गई है।

प्रिय उसे तुम मत जगाओ।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈