हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 170 – दोहे – मीरा ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆
डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण गीत – क्यों कर पालिश करती हो…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 170 – दोहे – मीरा…
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चित्रकार चित्रित करे, लिखें ग्रंथ विद्वान
पर मीरा के ‘रहस’ को, कौन सका कब जान॥
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पहुंची मीरा द्वारका, थी गिरधर से होड़
पल भर में ही हो गये, ‘मीरा-मय’ रणछोड़।।
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मीरा जन्मी जगत् में, साक्षी सकल समाज
देख न पाये विदाई, रहे सभी मुहताज ॥
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तुलसी सूर कबीर के, जीवन चरित अनुप
मीरा अपने आप-सी, हो गई श्याम स्वरूप।।
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈