हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #218 – 105 – “वो नज़र दोनों चुराते ही रहे…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “वो  नज़र  दोनों  चुराते  ही  रहे…” ।)

? ग़ज़ल # 105 – “वो  नज़र  दोनों  चुराते  ही  रहे…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

ज़िंदगी में अक्सर एक भरम रहा,

आदमी  ताज़िंदगी  बरहम  रहा।

हाथ पर  हाथ धरे  वो बैठी रही,

यार मेरा  खून  थोड़ा गरम रहा।

वो  नज़र  दोनों  चुराते  ही  रहे,

मुहब्बत का मगर बीच भरम रहा।

आँख रोती रात दिन फुरकत ए ग़म,

दिल मगर दोनों ही तरफ़ नरम रहा।

सूरत  वस्ल की  नज़र में  है नहीं,

आतिश उसे मिले बिना दरहम रहा।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈