हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 164 – गीत – नासमझी का है अभिनय… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण गीत –नासमझी का है अभिनय।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 164 – गीत – नासमझी का है अभिनय…  ✍

 वैसे तो सब समझ गया हूँ, नासमझी का है अभिनय।

 

जिस बगिया में फूल खिले हैं

वहाँ भीड़ भौंरों की होगी

आँखों के अंकुश से बचकर

आमद भी औरों की होगी

मालिक मौसम रूठ न जाये, मुझको केवल इतना भय ।

 

हम तो हैं रस्ते के राही

फूल तुम्हारे बाग तुम्हारा

खुशबू खुद न्योता देती है

फूलों जैसा गात तुम्हारा

अपमानित मधुमास हुए तो पतझरों की होगी जय।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈