हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 21 – विपदा हुई सगी… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – विपदा हुई सगी।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 21 – विपदा हुई सगी… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

जब विलासिता के साधन 

सारे उपलब्ध हुए 

केवल जिव्हा छोड़

हमारे अंग शिकस्त हुए 

 

ज्यादा से ज्यादा पाने की 

तृष्णा और जगी 

सगे, पराये हुए 

हमारी विपदा हुई सगी 

जिनसे थी उम्मीद

वही विपरीत समस्त हुए 

 

जिन सपनों को, उम्मीदों से 

था पोसा-पाला 

अपमानों का वही 

पिलाते हैं कडुवा प्याला 

संस्कार, सम्मान भाव के

लकवाग्रस्त हुए 

 

निकटस्थों से आज 

हमारी बढ़ी बहुत दूरी 

शायद हम ही नहीं समझते 

उनकी मजबूरी 

तृष्णा की आपाधापी में

कितने व्यस्त हुए

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈