हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लघुकथा # 198 ☆ “फैसला” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – “फैसला)

☆ लघुकथा ☆ “फैसला” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय 

नम आंखों से कामेश और शिखा ने अपने बेटे और बहू को जब एक साल पहले विदा किया था तो समर ने वायदा किया था कि हर दिन वह फोन पर बात करेगा। पर साल भर बाद पंखुड़ी ने बताया कि समर इतने अधिक बिजी हो गए हैं कि थोड़ी सी बात करने का भी उन्हें समय नहीं मिलता। हताश कामेश और शिखा हर दिन समर को याद करते रहते और उसके फोन का रास्ता देखते रहते। कामेश लगातार बीमारी से टूट से गए थे, ज्यादा गंभीर होने से एक दिन उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। समर का फोन तो आया नहीं, हारकर शिखा ने समर को फोन लगाया।

– हलो…. बेटा तुम्हारे पापा अस्पताल में बहुत सीरियस हैं तुम्हें बहुत याद कर रहे हैं, उनका आखिरी समय चल रहा है। यहां मेरे सिवाय उनका कोई नहीं है। कब आओगे बेटा ? वे तुम्हें एक नजर देखना चाहते हैं। 

— मां बहुत बिजी हूं। वैसे भी इण्डिया में अभी बहुत गर्मी होगी, इण्डिया में अपने घर में एसी- वेसी भी नहीं है। समीरा से बात करता हूं कि अभी पापा को अटेंड कर ले  फिर माँ के समय मैं आ जाऊँगा। तुम तो समझती हो मां… मुझे तुम से ज्यादा प्यार है। 

— पर बेटा वे तो मरने के पहले सारी प्रापर्टी तुम्हारे नाम करना चाहते हैं।

— मम्मी, फिर मैं कोशिश करता हूं। 

© जय प्रकाश पाण्डेय

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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈