श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 193 ☆ कबीर जयंती विशेष – साधो देखो जग बौराना ?

आज कबीर जयंती है। यूँ कहें तो कबीर याने फक्कड़ फ़कीर, यूँ समझें तो कबीर याने दुनिया भर का अमीर। वस्तुत: कबीर को समझने के लिए पहले आवश्यक है यह समझना कि वस्तुतः हमें किसे समझना है। पाँच सौ साल पहले निर्वाण पाए एक व्यक्ति को या कबीर होने की प्रक्रिया को? दहन किये गए या दफ़्न किये गए या विलुप्त हो गये  दैहिक कबीर को पाँच सदी की लम्बी अवधि बीत गई। अलबत्ता आत्मिक कबीर को समझने के लिए यह समयावधि बहुत कम है।

प्रश्न तो यह भी है कि कबीर को क्यों समझें हम? छोटे मनुष्य की छोटी सोच है कि कबीर से हमें क्या हासिल होगा? कबीर क्या देगा हमें? कबीर जयंती पर इस प्रश्न का स्वार्थ अधिक गहरा जाता है।

कबीर को समझने में सबसे बड़ा ऑब्सटेकल या बाधा है कबीर से कुछ पाने की उम्मीद। कबीर भौतिक रूप से कुछ नहीं देगा बल्कि जो है तुम्हारे पास, उसे भी छीन लेगा। पाने नहीं छोड़ने के लिए तैयार हो तो कबीर आत्मिक रूप से तुम्हें मालामाल कर देगा।

आत्मिक रूप से मालामाल कर देने का एक अर्थ कबीर का ज्ञानी, पंडित, आचार्य, मौलाना, फादर या प्रीस्ट होना भी है। इन सारी धारणाओं का खंडन खुद कबीर ने किया, यह कहकर,

‘मसि कागद छूयौ नहिं, कलम नहिं गहि हाथ।’

कबीर दीक्षित है, शिक्षित नहीं।

कबीर अंगूठाछाप है। ऐसा निरक्षर जिसके पास  अक्षर का अकूत भंडार है। कबीर कुछ सिखाता नहीं। अनसीखे में बसी सीख, अनगढ़ में छुपे शिल्प को देखने-समझने की आँख है कबीर। हासिल होना कबीर होना नहीं है, हासिल को तजना कबीर है। भरना पाखंड है, रीत जाना आनंद है। पाना रश्क है, खोना इश्क है,

हमन से इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या

रहे।

आज़ाद या जग से, हमन को  दुनिया से यारी क्या।

और जब इश्क या प्रेम हो जाए तो अनसीखा आत्मिक पांडित्य तो जगेगा ही,

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

कबीर सहज उपलब्ध है। कबीर होने के लिए, उसकी संगत काफी है। ओशो ने सहक्रमिकता के सिद्धांत या लॉ ऑफ सिंक्रोनिसिटी का उल्लेख कबीर के संदर्भ में किया है। किसी वाद्य के दो नग मंगाये जाएँ। कमरे के किसी कोने में एक रख दिया जाए। दूसरे को संगीत में डूबा हुआ संगीतज्ञ (ध्यान रहे, ‘डूबा हुआ’ कहा है, ‘सीखा हुआ’ नहीं)  बजाए।  सिंक्रोनिसिटी के प्रभाव से कोने में रखा वाद्य भी कसमसाने लगता है। उसके तार अपने आप कसने लगते हैं और वही धुन स्पंदित होने लगती है।

कबीर का सान्निध्य भीतर के वाद्य को स्पंदित करता है। भीतर का स्पंदन मनुष्य में मानुषता का सोया भाव जाग्रत कर देता है। जाग्रत अवस्था का मनुष्य, सच्चा मनुष्य हो जाता है और बरबस कह उठता है,

साँची कहौ तो मारन धावै झूँठे जग पतियाना।

साधो, देखो जग बौराना।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना संपन्न हुई साथ ही आपदां अपहर्तारं के तीन वर्ष पूर्ण हुए 🕉️

💥 अगली साधना की जानकारी शीघ्र ही आपको दी जाएगी💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments