श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है पं अनिल कुमार पाण्डेय जी की पुस्तक  “नासै रोग हरे सब पीरा” पर पुस्तक चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 138 ☆

☆ “नासै रोग हरे सब पीरा. . .” – पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

पुस्तक चर्चा

नासै रोग हरे सब पीरा. . .

श्री हनुमान चालीसा की विस्तृत विवेचना

लेखक – पं अनिल कुमार पाण्डेय

आसरा ज्योतिष केंद्र, साकेत धाम कालोनी, मकरोनिया, सागर

मूल्य २५० रुपये, पृष्ठ १८४, प्रकाशन वर्ष २०२३

☆ श्री हनुमान चालीसा की यह विस्तृत विवेचना अपूर्व है. पठनीय है ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

गोस्वामी तुलसीदास सोलहवीं शती के एक हिंदू कवि-संत और दार्शनिक थे. उन्होंने भगवान राम के प्रति अपनी अगाध भक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं. तत्कालीन आक्रांताओ से पीड़ित भारतीय सामाजिक स्थितियों में उन्होंनें समकालीन भक्ति धारा में रामचरित मानस जैसे वैश्विक ग्रंथ की रचना कर लोक भाषा में की. उनकी लेखनी के प्रभाव से हिन्दू धर्मावलंबी राम नाम का आसरा लेकर तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी जीवंत बने रहे. यही नही जब गिरमिटिया देशो में भारतीयो को मजदूरों को रूप में ले जाया गया तो मानस जैसे ग्रंथों के कारण ही परदेश में भी भारतीय संस्कृति और राम कथा का विस्तार हुआ. आज भी यह इन सूत्र भारत को इन राष्ट्रों से जोड़े हुये है.

इस कृति में पंडित अनिल पांडेय जी तर्क सम्मत तथ्य रखते हैं की हनुमान चालीसा की रचना तुलसीदास जी ने गुरु सानिध्य में की थी यद्यपि किवदंति है कि एक बार अकबर ने गोस्वामी जी का प्रताप सुनकर उन्हें अपनी राज सभा में बुलाया और उनसे कहा कि मुझे भगवान श्रीराम से मिलवाओ. तुलसीदास जी ने उत्तर दिया कि भगवान श्री राम केवल अपने भक्तों को ही दर्शन देते हैं. यह सुनते ही अकबर ने गोस्वामी तुलसीदास जी को कारागार में बंद करवा दिया.

कारावास में ही गोस्वामी जी ने अवधी भाषा में हनुमान चालीसा की रचना की. जैसे ही हनुमान चालीसा लिखने का कार्य पूर्ण हुआ वैसे ही पूरी फतेहपुर सीकरी को बन्दरों ने घेरकर धावा बोल दिया. अकबर की सेना बन्दरों का आतंक रोकने में असफल रही. तब अकबर ने किसी मन्त्री के परामर्श को मानकर तुलसीदास जी को कारागार से मुक्त कर दिया. जैसे ही तुलसीदास जी को कारागार से मुक्त किया गया, बन्दर सारा क्षेत्र छोड़कर वापस जंगलो में चले गये. इस अद्भुत घटना के बाद, गोस्वामी तुलसीदास जी की महिमा दूर-दूर तक फैल गई और वे एक महान संत और कवि के रूप में जाने जाने लगे.

श्री हनुमान चालीसा अवधी में लिखी एक लघुतम काव्यात्मक कृति है. इसमें प्रभु श्री राम के महान भक्त एवं सदा हमारे साथ जीवंत स्वरूप में विद्यमान श्री हनुमान जी के गुणों एवं कार्यों का मात्र चालीस चौपाइयों में विशद वर्णन है. इस लघु रचना में पवनपुत्र श्री हनुमान जी की सुन्दर विनय स्तुति व भावपूर्ण वन्दना की गई है. हनुमान चालीसा में प्रभु श्रीराम का व्यक्तित्व भी सरल शब्दों में वर्णित है. अजर-अमर भगवान हनुमान जी वीरता, भक्ति और साहस की प्रतिमूर्ति हैं. शिव जी के रुद्रावतार माने जाने वाले हनुमान जी को बजरंगबली, पवनपुत्र, मारुतीनन्दन, केसरी नन्दन, महावीर आदि नामों से भी जाना जाता है. हनुमान जी का प्रतिदिन ध्यान करने और उनके मन्त्र जाप करने से मनुष्य के सभी भय दूर होते हैं. श्री हनुमान चालीसा अवधी भाषा में लिखे गये सिद्ध मंत्र ही हैं. जिनका पाठ समझ कर, या श्रद्धापूर्वक बिना गूढ़ार्थ समझे भी जो भक्त करते हैं उन्हें निश्चित ही मनोवांछित फल प्राप्त होते देखा जाता है.

ऐसी सर्वसुलभ सहज सूक्ष्म चालीसा की बहुत टीकायें नही हुई हैं. गीत संगीत नृत्य चित्र आदि विविध विधाओ में श्री हनुमान चालीसा को भक्ति भाव से समय समय पर विविध तरह से अवश्य प्रस्तुत किया गया है. विद्वान कथा वाचकों ने जीवन मंत्रों के रूप में अपने प्रवचनो में हनुमान चालीसा के पदों की व्याख्यायें अपनी अपनी समझ के अनुरूप की हैं. श्री बागेश्वर धाम के पं धीरेंद्र शास्त्री जी तो श्री बालाजी हनुमान जी की ही महिमा प्रचारित कर रहे हैं. मैंने कुछ विद्वानो को मैनेजमेंट की शिक्षा के सूत्रों के साथ श्री हनुमान चालीसा के पदों से तादात्म्य बनाकर व्याख्या करते भी सुना है. सच है जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तिन तैसी. स्वयं मैंने विश्व में जहां भी मैं गया श्री हनुमान चालीसा के जाप मात्र से सकारात्मक प्रभाव अनुभव किया है.

पं अनिल कुमार पाण्डेय सचमुच हनुमत चरण सेवक हैं. वे आजीवन मानस, वाल्मीकी रामायण, यथार्थ गीता, भगवत गीता, पुराणो, ज्योतिष के ग्रंथो, गुरु ग्रंथ साहब आदि आदि महान ग्रंथो के अध्येता रहे हैं. “नासै रोग हरे सब पीरा. . . ” नाम से उन्होंने श्री हनुमान चालीसा के प्रत्येक पद, प्रत्येक शब्द की सविस्तार व्याख्या करते हुये इन सभी ग्रंथों से प्रासंगिक उद्धवरण देते हुये विवेचना की है. अनेक कवियों ने जिनमें मेरे पिताजी पूज्य प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव जी ने भी हनुमत स्तुतियां रची हैं. भगवान हनुमान जी पर मैंने श्री अमरेंद्र नारायण जी, श्री सुशील उपाध्याय जी, की किताबें पढ़ी हैं. मैं दावे से कह सकता हूं कि पं अनिल कुमार पाण्डेय जी द्वारा की गई श्री हनुमान चालीसा की यह विस्तृत विवेचना अपूर्व है. पठनीय है. मनन करने को प्रेरित करती है. पाठक को चिंतन की गहराई में उतारती है. प्रायः हिन्दू परिवारों में स्नान के उपरांत प्रतिदिन लोग श्री हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं. बहुतों को यह कंठस्थ है. नये इलेक्ट्रानिक संसाधनो यू ट्यूब आदि के माध्यम से मंदिरों में श्री हनुमान चालीसा गाई बजाई जाती है. धार्मिक मूढ़ता और राजनैतिक उन्माद में श्री हनुमान चालीसा को अस्त्र के रूप में प्रयोग करने से भी लोग बाज नहीं आ रहे. मेरा सदाशयी आग्रह है कि एक बार इस पुस्तक का गहन अध्ययन कीजीये, स्वतः ही जब आप गूढ़ार्थ समझ जायेंगे तो विवेक जागृत हो जायेगा और आप श्री हनुमान चालीसा जैसे सिद्ध मंत्र का श्रद्धा भक्ति और भावना से सकारात्मक सदुपयोग करेंगें तथा श्री हनुमान चालीसा के अवगाहन का सच्चा गहन आनंद प्राप्त कर सकेंगे. 

खरीदिए और पढ़िये किताब अमेजन पर सुलभ है. aasra. jyotish@gmail. com पर आप लेखक से सीधा संपर्क भी कर सकते हैं. जय जय श्री हनुमान.

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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