हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 72 – दिखती कलियुग मार… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण एवं विचारणीय रचना “दिखती कलियुग मार…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 72 – दिखती कलियुग मार… ☆

दिखती कलियुग मार, जींमते दोने में।

पड़े वृद्ध माँ-बाप, तिरस्कृत कोने में।।

 

सपन-सुनहरे देख, खपा दी उमर सभी,

निकल न पाया सार, व्यर्थ अब रोने में।

 

त्रेतायुग की याद, दिलों में है बसती ,

श्रवण हुए गुमराह, लगे अब सोने में।

 

आँखें खोलो जगो, समय की बलिहारी,

कृपा करो भगवान, पाप को धोने में ।  

 

संस्कृति है बदनाम, करें पुण्य-कमाई,

मत जग करो प्रलाप, स्वजन के होने में।

 

श्रम से होती सुखद,  निरोगी मन-काया,

सुखद मिलेगी फसल, बीज के बोने में।

 

सेवा-मेवा-श्रेष्ठ, समझना हम सबको,

पड़ती चाबुक मार, समय को खोने में।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈