हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ यात्रा संस्मरण – यायावर जगत # 02 ☆ मेरी डायरी के पन्ने से… स्पेन, पुर्तगाल और मोरक्को… भाग – 1 ☆ सुश्री ऋता सिंह ☆

सुश्री ऋता सिंह

(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार। आप प्रत्येक मंगलवार, साप्ताहिक स्तम्भ -यायावर जगत के अंतर्गत सुश्री ऋता सिंह जी की यात्राओं के शिक्षाप्रद एवं रोचक संस्मरण  आत्मसात कर सकेंगे। इस श्रृंखला में आज प्रस्तुत है आपका यात्रा संस्मरण – मेरी डायरी के पन्ने से…स्पेन, पुर्तगाल और मोरक्को… का पहला भाग )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ –यात्रा संस्मरण – यायावर जगत # 02 ☆  

? मेरी डायरी के पन्ने से… स्पेन, पुर्तगाल और मोरक्को… भाग – 1 ?

 2015 अक्टोबर इस साल हमने स्पेन, पुर्तगाल और मोरक्को  घूमने का कार्यक्रम बनाया।

इस बार हम तीन सप्ताह हाथ में लेकर निकले थे।यात्रा के आने – जाने के दो दिन अलग ताकि पूरे इक्कीस दिनों का पूरा आनंद लिया जा सके। हमने  बहुत सोच-समझकर तीनों देशों की भौगोलिक  सुंदरता और ऐतिहासिक  विशेषताओं को ध्यान में रखकर देखने योग्य स्थानों का चयन किया।

सच पूछिए तो किसी भी देश में अगर हम अच्छी तरह से घूमना चाहें तो दो महीने तो  अवश्य ही लग जाएँगे पर यह हमेशा संभव नहीं होता। अगर हमारे देश के समान या उससे भी बड़ा देश हो तो और अधिक समय लग जाएगा। इसलिए विदेशों में घूमते समय सबसे पहले अपनी खर्च करने की आर्थिक क्षमता को जाँचना आवश्यक होता है फिर रुचि अनुसार शहरों का चयन किया जाना चाहिए। चूँकि हमारे पास इक्कीस दिन थे तो हमने भी अपनी रुचि अनुसार दर्शनीय स्थानों की सूचि बना ली थी और उसी के आधार पर सभी जगह रहने की सुविधानुसार व्यवस्था भी कर रखी थी। विदेश यात्रा के दौरान सुनियोजित बजट बना लेना उपयोगी और आवश्यक होता है क्योंकि हम विदेशी मुद्रा पर निर्भर करते हैं।

हमारी पहली मंजिल थी पुर्तगाल या पोर्त्युगल। हम पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन पहुँचे। हम यहाँ तीन दिन रहे। हमारा अधिक उत्साह उस पोर्ट को देखने का था जहाँ से 1497 में  वास्को डगामा चार जहाजों के साथ भारत के लिए रवाना हुए थे और पहली बार योरोप और भारत के बीच समुद्री मार्ग खुल गए थे। साथ ही हमारे देश में योरपीय दासता का इतिहास का अध्याय भी प्रारंभ हुआ था।

हम दोपहर तक उस विशाल पोर्ट पर रहे, पत्थरों से बने पुराने ज़माने के लाइट हाउस पर चढ़कर दूर तक समुद्र को निहारने का आनंद लिया। आस पास कई छोटी -छोटी जगहें हैं उन्हें देखने का आनंद उठाया।

लिस्बन शहर समुद्री तट पर बसा है। यहाँ के कई  संग्रहालयों से हमें काफी जानकारी मिली। यहाँ पर अधिकतर दर्शनीय स्थल विभिन्न क्रूज़ द्वारा ही किए जाते हैं। कुछ प्रसिद्ध किले भी हैं । इस शहर के अन्य दर्शनीय स्थानों का भ्रमण कर हम उनके बाज़ार देखने गए।

कई अलग प्रकार के फल, शाक और सब्ज़ियाँ देखी जो हमारे देश से अलग हैं। छोटी -छोटी लाल तेज़ गुच्छों में मिर्ची देखने को मिली।इसे यहाँ पिरिपिरि कहते हैं।

इस पिरिपिरि के साथ हमारे देश का एक पुराना इतिहास भी जुड़ा है।हमारे देश में पुर्तगालियों के आने से पूर्व केवल कालीमिर्च की पैदावार होती थी ,हरीमिर्च जिसका उपयोग  नित्य अपने भोजन में आज हम करते हैं वह पुत्रगालियों की ही देन है। वे मिर्च पहले गोवा में ले आए और 17वीं शताब्दी में शिवाजी की सेना इसे देश के  बाकी हिस्सों में ले जाने में सफल हुई।आज हमारे देश में कई प्रकार की मिर्चियाँ उगाई जाती हैं।

लिस्बिन देखकर हम प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण शहर अल्बूफेरिया देखने के लिए रवाना हुए। यह यात्रा हमने यूरोरेल द्वारा की क्योंकि इन दोनों शहरों के बीच का अंतर 255 कि.मी.है और अढ़ाई घंटे का समय लगता है।यहाँ बसें भी चलती हैं पर समय अधिक लग सकता है।

हम अल्बूफेरिया में हम चार दिन रहे। यह सुंदर शहर समुद्र और पहाड़ों के बीच बसा है।

यहाँ हमने कई किले देखे जो अपने समय का इतिहास बयान करते हैं। पुरानी छोटी-बड़ी तोपें अब भी किले की शोभा बनी हुई हैं। यह ऐतिहासिक शहर है।पहाड़ी इलाका होने के कारण सड़कें संकरी और टाइल्स लगी हुई हैं। छोटी -छोटी बसें इन सड़कों पर चलती हैं पर किले तक जाने वाली  चढ़ाई चलकर ही चढ़नी पड़ती है।

किले के  प्रारंभ में सोवेनियर की दुकानें हैं।चाय-नाश्ता कॉफी की छोटी -छोटी सुसज्जित टपरियाँ हैं। यहीं पर पहली बार क्रॉसें खाने का स्वाद मिला।

दूसरे दिन हमने  एक बड़े जहाज़ द्वारा समुद्र पर सैर करने का आनंद लिया।इस बड़े जहाज से उतरकर समुद्र के बीच हमें छोटे लाइफबोट में बिठाया गया और समुद्र में स्थित गुफाओं का दर्शन कराया गया। यह एक अनूठा अनुभव था। छोटे मोटर बोट या लाइफबोट आसानी से  गुफाओं के भीतर प्रवेश कर सकते हैं। यहाँ की गुफाएँ ऊपर से खुली -सी हैं जहाँ से सूरज का प्रकाश स्वच्छ जल पर आ गिरता है।मोटर बोट से जहाज़ पर चढ़ना एक भारी कठिन काम था। विशेषकर जब जल से मन में भय हो! इन गुफाओं के पास हमें ऊदबिलाव के अनेक परिवार दिखे।ये बहुत शर्मीले प्राणी हैं तथा झुंड में ही रहते हैं।इन्हें तकलीफ न हो या वे डिस्टर्ब न हों इसलिए लाइफबोट का उपयोग किया जाता है जो चप्पू द्वारा चलाया जाता है।

इस शहर का  एक पहाड़ी हिस्सा भी है  जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है,हम तीसरे दिन यहाँ के बहुत खूबसूरत जंगल देखने के लिए निकले। यह पहाड़ी इलाका है और यहाँ बड़ी तादाद में वे वृक्ष उगते हैं जिनसे कॉर्क बनाया जाता है। हमें कॉर्क बनाने की फैक्ट्री, शराब बनाई जाने वाली फैक्ट्री आदि देखने का यहाँ मौका भी मिला। हमारे स्वदेश लौटने के कुछ माह बाद इस विशाल सुंदर जंगल में भीषण आग लगी और जंगल के राख हो जाने का समाचार मिला।हम इस बात से बहुत आहत भी  हुए।

इस शहर में कई  संग्रहालय भी हैं जहाँ अनेक प्रकार की मूर्तियाँ और पेंटिंग्स देखने को मिले। निरामिष भोजन के लिए हमें थोड़ी तकलीफ अवश्य हुई अन्यथा यह खूबसूरत देश है। सुंदर चर्च हैं।लोग देर से उठना और देर रात तक खाने -पीने में विश्वास करते हैं, जिस कारण यहाँ के लोगों की सुबह देर से प्रारंभ होती है। पुर्तगाल के पुराने शहरों को देखकर आपको हमारे देश का खूबसूरत गोवा अवश्य स्मरण हो आएगा।

क्रमशः…

© सुश्री ऋता सिंह

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ईमेल आई डी – ritanani [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈