हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 132 ☆ – गीत – नदी मर रही है… – ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  गीत “~ नदी मर रही है… ~”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 132 ☆ 

~ गीत ~ नदी मर रही है ~ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

नदी नीरधारी, नदी जीवधारी,

नदी मौन सहती उपेक्षा हमारी

नदी पेड़-पौधे, नदी जिंदगी है-

भुलाया है हमने नदी माँ हमारी

नदी ही मनुज का

सदा घर रही है।

नदी मर रही है

*

नदी वीर-दानी, नदी चीर-धानी

दी ही पिलाती बिना मोल पानी,

नदी रौद्र-तनया, नदी शिव-सुता है-

नदी सर-सरोवर नहीं दीन, मानी

नदी निज सुतों पर सदय, डर रही है

नदी मर रही है

*

नदी है तो जल है, जल है तो कल है

नदी में नहाता जो वो बेअकल है

नदी में जहर घोलती देव-प्रतिमा

नदी में बहाता मनुज मैल-मल है

नदी अब सलिल का नहीं घर रही है

नदी मर रही है

*

नदी खोद गहरी, नदी को बचाओ

नदी के किनारे सघन वन लगाओ

नदी को नदी से मिला जल बचाओ

नदी का न पानी निरर्थक बहाओ

नदी ही नहीं, यह सदी मर रही है

नदी मर रही है

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१२.३.२०१८, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈