हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ गजल # 123 – “उसकी आँखो की है तारीफ यही……” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण गजल –उसकी आँखो की है तारीफ यही…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 123 ☆।। गजल।। ☆

☆ || “उसकी आँखो की है तारीफ यही || ☆

ओढ कर मुस्कराहट की चादर

दिख रहा हरा भरा अपना घर

 

देहरी पर खडा हुआ कोई

पूछ ने क्या हो गई दुपहर ?

 

किस तरह अस्त व्यस्त दिखता है

दूरके गाँव से पुराना शहर

 

उसकी आँखो की है तारीफ यही

लगा करती थी कभी जिनको नजर

 

तुम्हारे घरकी गली में अबभी

ढूँडता हूँ वही पुराना असर

 

देख लें जिन्दा अभी होंगे वहाँ

मिलें किताब में वे फूल अगर

 ©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

27-11-2022

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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈