हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 40 ☆ कविता – श्मशान बस्ती… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता श्मशान बस्ती ”। 

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 40 ✒️

? कविता – श्मशान बस्ती… — डॉ. सलमा जमाल ?

(स्वतंत्र कविता)

मेरे एक मित्र

हैं सचरित्र ,

मिले राह में

कहने लगे

बात ही बात में,

“कष्ट करो घर का पता

बताने का

ताकि हो दर्शन

ग़रीब खाने का ” ।।

 

हम अचकचाए

उनसे मिलने पर

पछताए,

कहा-

” हम हैं लाचार ,

मत करो हम पर

अत्याचार ,

हमारी है ऐसी बस्ती

जहां निवास करती हैं

एक से एक हस्ती ।

 

हैं ऐसी महान,

संध्या समय बस्ती

लगती है श्मशान ,

प्रत्येक चेहरे पर

स्वार्थ की फ़टकार

बरसती है ,

होंठों पर आने को

मुस्कान तरसती है ,

वहां का प्रत्येक व्यक्ति

आपको प्रेत लगेगा ।

झाड़-फूंक से भी इलाज

उसका ना हो सकेगा ,

सब कुछ महंगा है ,

सिर्फ़ नीचता सस्ती है ।

 

मित्र बोले –

“बस करो,

या इलाही

यह कौन सी बस्ती है ” ।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈