हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संवाद # 101 ☆ ये पब्लिक है —☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय लघुकथा ‘ये पब्लिक है —’।  डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस लघुकथा रचने  के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 101 ☆

☆ लघुकथा – ये पब्लिक है — ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

राजा का दरबार सजा  था। सभी विभागों के मंत्री अपनी – अपनी गद्दी पर आसीन थे। ‘अच्छे दिन आएंगे एक दिन– ’की मीठी धुन पार्श्वसंगीत की तरह बज रही थी। राजा एक – एककर मंत्रियों से देश के राजकाज के बारे में पूछ रहा था। मंत्रीगण भी बड़े जोश में थे। गृह मंत्री बोले –‘ सुशासन है, भाईचारा है महाराज ! भ्रष्टाचार,घूसखोरी खत्म कर दी हमने। रिश्वत ना लेंगे, ना देंगे। सब कुछ व्यवस्थित चल रहा है देश में।‘ मंत्री जी ने गरीबी, बेरोजगारी जैसी अनेक समस्याओं को अपने  बटुए में चुपके से डाल डोरी बाँध दी। राजा मंद – मंद मुस्कुरा रहा था।

वित्त मंत्री खड़े हुए – महाराज! गरीबों को गैस सिलेंडर मुफ्त बाँटे जा रहे हैं। किसानों को कम ब्याज पर कर्ज दिया जा रहा है। गरीबों के लिए ‘तुरंत धन योजना’  शुरू की है और भी बहुत कुछ। किसानों की आत्महत्याओं, महंगाई के मुद्दे को उन्होंने जल्दी से अपने बटुए  में खिसका दिया। धुन बज उठी – ‘अच्छे दिन आएंगे एक दिन — -’। राजा मंद – मंद मुस्कुरा रहा था।

रक्षा मंत्री की बारी आई, रोब-दाब के साथ राजा को खड़े होकर सैल्यूट मारा और बोले – हमारी सेनाएं चौकस हैं। सीमाएं सुरक्षित हैं। कहीं कोई डर नहीं। नक्सलवाद, आतंकवादी हमले, शहीद सैनिकों की खबरें, सब बड़े करीने से इनके बटुए  में दफन हो गईं। राजा मुस्कुराते हुए ताली बजा रहा था।

अब शिक्षा मंत्री तमाम शिष्टाचार निभाते हुए सामने आए – शिक्षा के क्षेत्र में तो आमूल-चूल परिवर्तन किए गए हैं महाराज! नूतन शिक्षा नीति लागू हो रही है, फिर देखिएगा —। गरीबों को मुफ्त शिक्षा दी जा रही है। शिक्षकों के  भर्ती  घोटाले, महाविद्यालयों में पाँच – सात हजार पर काम करते शिक्षक जैसे ना जाने कितने मुद्दे इनके भी बटुए में  चले ही गए।

राजा – मंत्री सब एक सुर  में बोल रहे थे और ‘अच्छे दिन आएंगे एक दिन’ की ताल पर मगन मन थिरक रहे थे।

राजा के दरबार के एक कोने में ‘अच्छे दिन’ की आस में अदृश्य जनता खड़ी थी। राजा उसे नहीं, पर वह सब देख – सुन और समझ रही थी। ये पब्लिक है,सब जानती है —

©डॉ. ऋचा शर्मा

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