हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता # 155 ☆ “आदिवासी औरतें” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी  की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता – “आदिवासी औरतें”)  

☆ कविता # 155 ☆ “आदिवासी औरतें” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

पुरखों का आशीष

लिए वे गातीं हैं 

जंगल के गीत,

 

पहाड़ी नदी के

उफान से बह जाता 

 है उनका काजल,

 

वे नहीं लगातीं

गोरेपन की 

कोई मंहगी क्रीम,

 

सौन्दर्य सहेज कर

रखतीं हैं नाक नक्श में

अपनी सच्चाई के साथ,

 

उनकी हंसी से

खिलखिलाते हैं साल 

फूल जाता है महुआ,

 

 उनकी आंखों के

 कोरों से बह जाती

 है जंगली नदी ,

 

वे जूड़े में गुथ

 लेतीं है जंगल का

 नैसर्गिक सौन्दर्य,

© जय प्रकाश पाण्डेय

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