हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 34 ☆ मुक्तक ।। झूठ  के पाँव  नहीं  होते हैं ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।। झूठ  के पाँव  नहीं  होते हैं।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 34 ☆

☆ मुक्तक ☆ ।। झूठ  के पाँव  नहीं  होते हैं ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆ 

[1]

यही सच  कि  सत्य  का  कोई  जवाब नहीं है।

एक सच ही जिसके चेहरे पर नकाब नहीं है।।

सच   सा  नायाब  कोई  और  नहीं  है  दूसरा।

इक  सच  ही  तो   झूठा  और  खराब  नहीं  है।।

[2]

सच   मौन   हो   तो   भी   सुनाई   देता है।

सात परदों के पीछे से भी दिखाई देता है।।

फूस में चिंगारी सा छुप कर आता है बाहर।

सच ही हर मसले की सही सुनवाई देता है।।

[3]

चरित्र   के   बिना   ज्ञान  इक  झूठी  सी  ही  बात है।

त्याग   बिन   पूजन   तो   जैसे   दिन   में   रात है।।

सिद्धांतों बिन राजनीति भी विवेकशील होती नहीं।

मानवता बिन विज्ञान  भी  इक  गलत  सौगात   है।।

[4]

सत्य  स्पष्ट  सरल  नहीं   इसमें  कोई  दाँव  होता  है।

जैसे   धूप   में   लगती  शीतल सी   छाँव   होता   है।।

गहन   अंधकार   को   भी   सच  का सूरज चीर देता।

सच के सामने नहीं टिकता झूठ का पाँव नहीं होता है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈