हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 100 ☆ ’’अपना भाग्य बनाइये…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा श्री गणेश चतुर्थी पर्व पर रचित एक कविता  “अपना भाग्य बनाइये…”। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा 100 ☆ गज़ल – अपना भाग्य बनाइये” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

कोसिये मत भाग्य को, निज भाग्य को पहचानिये

भाग्य अपने हाथ में है, कुछ तो, इतना जानिये।

 

ज्ञान औ’ विज्ञान हैं आँखें दो, इनसे देखिये

भाग्य अपना, अपने हाथों, आप स्वयं सजाइये।

 

बीत गये वे दिन कि जब सब आदमी मजबूर थे

अब तो है विज्ञान का युग, हर खुशी घर लाइये

 

एक मुँह तो हाथ दो-दो, दिये हैं भगवान ने

बात कम, श्रम अधिक करने को तो आगे आइये।

 

अब न दुनियाँ सिर्फ, अब तो चाँद-तारे साथ हैं

क्या, कहाँ, कब, कैसे, क्यों प्रश्नों को भी सुलझाइये।

 

जरूरी है पुस्तकों से मित्रता पहले करें

हम समस्या का सही हल उनको पढ़कर पाइये।

 

पढ़ना-लिखना है जरूरी जिससे बनता भाग्य है

जिंदगी को नये साँचे में समझ के सजाइये।

 

बदलती जाती है दुनियॉ अब बड़ी रफ्तार से

आप पीछे रह न जायें तेज कदम बढ़ाइये

 

जो बढ़े, बन गये बड़े, हर जगह उनका मान है

आप भी पढ़ लिख के खुद सबकों यही समझाइये।

 

सोच श्रम औ’ योजनायें बदलती परिवेश को

खुद समझ सब, अपने हाथों अपना भाग्य बनाइये।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

 

मो. 9425484452

 

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈