हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 107 ☆ गीत : भाग्य निज पल-पल सराहूँ… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित दोहा सलिला: शिक्षक पारसमणि सदृश…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 108 ☆ 

☆ दोहा सलिला: शिक्षक पारसमणि सदृश… ☆

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शिक्षक पारसमणि सदृश, करे लौह को स्वर्ण.

दूर करे अज्ञानता, उगा बीज से पर्ण..

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सत-शिव-सुंदर साध्य है, साधन शिक्षा-ज्ञान.

सत-चित-आनंद दे हमें, शिक्षक गुण-रस-खान..

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शिक्षक शिक्षा दे सदा, सकता शिष्य निखार.

कंकर को शंकर बना, जीवन सके सँवार..

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शिक्षक वह जो सिखा दे, भाषा गुण विज्ञान.

नेह निनादित नर्मदा, बहे बना गुणवान..

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प्रतिभा को पहचानकर, जो दिखलाता राह.

शिक्षक उसको जानिए, जिसमें धैर्य अथाह..

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जान-समझ जो विषय को, रखे पूर्ण अधिकार.

उस शिक्षक का प्राप्य है, शत शिष्यों का प्यार..

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शिक्षक हो संदीपनी, शिष्य सुदामा-श्याम.

बना सकें जो धरा को, तीरथ वसुधा धाम..

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विश्वामित्र-वशिष्ठ हों, शिक्षक ज्ञान-निधान.

राम-लखन से शिष्य हों, तब ही महिमावान..

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द्रोण न हों शिक्षक कभी, ले शिक्षा का दाम.

एकलव्य से शिष्य से, माँग अँगूठा वाम..

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शिक्षक दुर्वासा न हो, पल-पल दे अभिशाप.

असफल हो यदि शिष्य तो, गुरु को लगता पाप..

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राधाकृष्णन को कभी, भुला न सकते छात्र.

जानकार थे विश्व में, वे दर्शन के मात्र..

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महीयसी शिक्षक मिलीं, शिष्याओं का भाग्य.

करें जन्म भर याद वे, जिन्हें मिला सौभाग्य..

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शिक्षक मिले रवीन्द्र सम, शिष्य शिवानी नाम.

मणि-कांचन संयोग को, करिए विनत प्रणाम..

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ओशो सा शिक्षक मिले, बने सरल-हर गूढ़.

विद्वानों को मात दे, शिष्य रहा हो मूढ़..

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हो कलाम शिक्षक- ‘सलिल’, झट बन जा तू छात्र.

गत-आगत का सेतु सा, ज्ञान मिले बन पात्र..

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ज्यों गुलाब के पुष्प में, रूप गंध गुलकंद.

त्यों शिक्षक में समाहित, ज्ञान-भाव-आनंद..

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२४-८-२०१६

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 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈