हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #43 ☆ बीत गया सावन ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है रक्षाबंधन पर्व पर विशेष कविता “# बीत गया सावन #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 43 ☆

☆ # बीत गया सावन  # ☆ 

 

वो रेशमी फुहारें

वो मनमोहक नजारें

लगते थे कितने पावन

इस वर्ष-

ना झूले लगे हैं

ना मेले सजे हैं

कितना फीका फीका

बीत गया सावन

 

ना मेहंदी रचे हाथ है

ना सखियों  का साथ है

फूल भी मुरझा गये

भंवरे भी उदास है

उम्मीदें भी टूट गई

ना उम्मीदों भरा है दामन

बीत गया सावन

 

अमराई में कोयल भी

अब कूकती नहीं है

सावन की रिमझिम लड़ी भी

अब लगती नहीं है

कशमकश में डूबा है

भीगा भीगा तन-मन

बीत गया सावन

 

शब्द निरर्थक हो गये है

गीत अपना अर्थ खो गये है

“रिश्ते” बाजार में बिक रहे हैं

“सच” कितने लोग लिख रहे है

“अक्श” धुंधला गये है

“श्याम” दरक रहे है दर्पण

बीत गया सावन /

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈