हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चट्टान ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – चट्टान ? ?

मैं

चट्टान बनकर खड़ा हूँ

प्रवाह के बीचों-बीच

वह

नदी बनकर

मेरे इर्द-गिर्द बह रही है

समीक्षा के शौकीन

प्रवाह की तरलता

और सरलता की

आदर्श कथा सुना रहे हैं

बगैर तथ्य जाने-समझे

मुझ पर संवेदनहीन,

जड़ और भोथरा

होने का आरोप लगा रहे हैं,

मैं चुप हूँ

वैसा ही, जैसे तब था,

तब…जब, वह

अपने सारे उफान,सारे तूफान

सारा आक्रोश,सारा असंतोष

मुझसे बयान करती

मेरे सीने से लगती

मुझसे लिपटती

कहती,सुनाती और रोती,

उसके भीतर जमा

सबकुछ प्रवाहित होने लगता

वह हल्की होती

शनैः-शनैः नदी बन

बहने लगती

….और मैं

भीतर ही भीतर समेटे

सारे झंझावत

निःशब्द खड़ा रह जाता,

उसे प्रवहमान करने

की प्रक्रिया में

सारा भीतर

भीतर ही भीतर सूख जाता,

ये सूखा भीतर

नित विस्तार पाता रहा

वह हर क्षण प्रवाह होती गई

मैं हर पल पाषाण होता रहा,

अब वह उछलती-कूदती नदी है

मैं हूँ निर्जीव चट्टान,

पर प्रवाह का

इतिहास लिखनेवालों का

है कहना;

हर नदी के लिए

आवश्यक है

एक चट्टान का होना! 

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈