हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 2 (51-55)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 2 (51-55) ॥ ☆

 

मृगेन्द्र के इतना बोलने पर पुनः वही श्शब्द हुये प्रकृति से

यथा शिखर पर उस प्रतिध्वनि ने विनत निवेदन किया नृपति से ॥51॥

 

तब धेनु की कातर दृष्टि द्वारा देख गया राजा बहुत आकुल

सुनकर वचन श्शम्भु के भृत्य के फिर बोला दया भाव से आर्त व्याकुल ॥52॥

 

रक्षा करे क्षत सह जो व्रती दृढ़ क्षत्रिय वही विश्व में है कहाता

विपरीत इसके उस राज्य से क्या ? जो प्राण – मन को कलुषित बनाता ॥53॥

 

यह है सुरभि धेनु अनुपम न इस तुल्य है दान पा गुरू हों प्रसन्न जिससे

यह जो तुम्हारा प्रहार इस पर यह शम्भु चल से है न कि तुमसे ॥54॥

 

स्वदेह भी दान दे आपको यह गुरू धेनु रक्षा समुचित मुझे है

होम आदि के कार्य रूकें न गुरू अतः सभी भांति उचित यही है ॥55॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈