हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य #87 ☆ भोजपुरी कविता – पानी रे पानी ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी की  एक भोजपुरी भावप्रवण रचना  “# पानी रे पानी #। ) 

यह रचना जीव जगत के जीवन में पानी की महत्ता तथा उसकी जरूरत को पारिभाषित करती है। तमाम पूर्ववर्ती संतों महात्माओं ने भी पानी के महत्त्व को समझाया है  कविवर रहीमदास जी के शब्दों में —

रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।

पानी गये न उबरे मोती मानुष चून।

 कवि की भोजपुरी भाषा की ये रचना इन्ही तथ्यो संपादित करती है।

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 87 ☆ # पानी रे पानी  # ☆

सागर में पानी हौ, बदरा में पानी हौ।

कुंअना में पानी हौ, गगरी में पानी हौ।

बोतलबंद पानी हौ, सुराही में पानी हौ।

पानी परान हौ, पानी से शान हौ।

बरखा में पानी हौ, पानी  जिंदगानी हौ।

पानी के अपने बचाई के राखा,

पानी के अपने बचाई के राखा।।1।।

 

पानी से खेती हौ पानी से बारी हौ।

पानी से बाग बगइचा फुलवारी हौ।

पानी से पान हौ, पानी से धान हौ।

पानी से बृष्टि हौ, पनियै से सृष्टि हौ।

 पनियै से जीवन हौ पानी ही सब धन हौ।

 पानी से मानुष के बचल मर्यादा।

पानी से आगि बुझावल जाला।

पानी में आगि लगावा जिन ए दादा।

 पानी के आपन बचाई के राखा,

पानी के आपन बचाई के राखा।।2।।

 

पानी से सीपी मोती उपजावै,

पानी ही लोहा कठोर बनावै।

पानी ही पगड़ी के इज्जत राखै,

पानी बिना जीव जान गवावै।

केहू के अंखियां भरल बाटै पानी,

केहू के आंख के मरि गयल पानी।

बिनु पानी देखा चिरइ पियासल मरै,

बिनु पानी दुनिया की खत्म कहानी।

येहि खातिर पानी बचाई के राखा,

एही खातिर पानी बचाई के राखा।।3।।

 

नाला नदी सब बिनु पानी सूखा,

ना बरसी पानी त परि जाइ सूखा।

पानी बिना सब जग बउराइ,

पानी क महिमा ना गवले ओराइ।

एहि खातिर पानी बचाई के राखा,

एहि खातिर पानी बचाई के राखा।।4।।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈