हेमन्त बावनकर

☆ सकारात्मक कविता – विरासत ☆ हेमन्त बावनकर 

( एक सच्ची घटना से प्रेरित )

एक कोरोना संक्रमित

पिच्यासी वर्षीय बुजुर्ग ने

अपनी बेड

एक कोरोना संक्रमित युवा को

यह कह कर दे दी कि –

“ मैं तो अपनी जिंदगी जी चुका

और

इस नौजवान के सामने सारी जिंदगी पड़ी है”

 

तीन दिन बाद

वे संसार से चले गए

और

दे गए विरासत में काफी कुछ

जिसको लौटाया नहीं जा सकता

बस

दिया जा सकता है

अगली पीढ़ी को

विरासत में।

 

© हेमन्त बावनकर, पुणे 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Pravin

प्रेरणादायी कृत्य!

Prabha Sonawane

सुंदर रचना

Shyam Khaparde

बेहतरीन भावपूर्ण रचना

सुहास रघुनाथ पंडित सांगली

यही सच्ची विरासत है.आपने उसे अधोरेखित किया है