हिन्दी साहित्य – कविता ☆ व्रत करती हुई स्त्री ☆ श्री रामस्वरूप दीक्षित

श्री रामस्वरूप दीक्षित

(वरिष्ठ साहित्यकार  श्री रामस्वरूप दीक्षित जी गद्य, व्यंग्य , कविताओं और लघुकथाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। धर्मयुग,सारिका, हंस ,कथादेश  नवनीत, कादंबिनी, साहित्य अमृत, वसुधा, व्यंग्ययात्रा, अट्टाहास एवं जनसत्ता ,हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स, राष्ट्रीय सहारा,दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, नईदुनिया,पंजाब केसरी, राजस्थान पत्रिका,सहित देश की सभी प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित । कुछ रचनाओं का पंजाबी, बुन्देली, गुजराती और कन्नड़ में अनुवाद। मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन की टीकमगढ़ इकाई के अध्यक्ष। हम भविष्य में आपकी चुनिंदा रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास करेंगे।

☆ कविता – व्रत करती हुई स्त्री ☆

स्त्री शिव भक्त है

रखती है

हर सोमवार को व्रत

यह सोचकर

कि शायद

ऐसा करने से

हो जाएं खुश

भगवान शिव

और कट जाएं उसकी मजबूत बेड़ियां

जो डाल रखी हैं समाज ने

उसके चारों तरफ

उसके सोचने, बोलने

लिखने – पढ़ने

चलने फिरने

घूमने घामने

खिलखिलाकर हंसने  बेबात

आँखें खोलकर देखने

अपने चारों तरफ

एकांत में ताकने

जी भर अपना आकाश

बगीचे में टहलते हुए

सहलाना फूलों को

तोड़ लेना कुछ पत्तियाँ यूं ही

पता नहीं क्या तो सोचते हुए

पहन लेना

अपनी पसंद के कपड़े

या गरमी के दिनों में

शाम को चले जाना

अकेले ही नदी के किनारे

और लौटना गुनगुनाते हुए

अपनी पसंद का गीत

पर सालों हो गए व्रत करते

न खुश हुए शिव

न कमजोर हुई बेड़ियों की जक

उम्मीद से भरी स्त्री

आज भी रख रही है व्रत

उम्मीद स्त्री की आखिरी ताकत है

 

© रामस्वरूप दीक्षित

सिद्ध बाबा कॉलोनी, टीकमगढ़ 472001  मो. 9981411097

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