हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  बसंत/वैलेंटाइन दिवस परआपके अप्रतिम दोहे।)

✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

प्रबल शक्ति है प्रेम की, चढ़ता रंग तुरंत।

वैलेंटाइन संत का, तन मन हुआ वसंत।।

 

वैलेंटाइन नाम का, चिंताजनक प्रयोग।

प्यार पड़ा बाजार में, चल निकला उद्योग।।

 

नहीं दिखावा प्यार है, प्यार न चालू गीत।

अनहद की हद लांघता, आत्मा का संगीत।।

 

प्यार शब्द में रूप है, रसवंती है गंध।

काव्य तत्व से युक्त यह, विधि का रचा निबंध।।

 

प्यार सदा ही ऊर्ध्वमुख, अधोमुखी है ज्वार।

तन्मयता की चंचलता, उपजाती है प्यार।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈