हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – 4 – खूब तरक्की ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆

श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी लघुकथा – खूब तरक्की ।) 

☆ लघुकथा – खूब तरक्कीश्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

अमित शारदा को ऐसी नजरों से देखा रहा था जाने वह क्या करेगा?

परंतु शारदा इग्नोर करती हुई, अपने किचन के कामों में भोजन बनाने के लिए जुट जाती है। अमित को बर्दाश्त नहीं होता और वह जोर जोर से गाली देने लगता है, बेटे आकाश को अपशब्द बोलने लगता है।

शारदा ने गंभीर स्वर में कहा-

“आप स्वयं जिम्मेदार पद पर हो और जब बेटा ड्यूटी ज्वाइन करने जा रहा है तो उसे अपशब्द बोल रहे हो।”

” असहाय नजरों से देखती हुई फूट -फूट कर बच्चों की तरह रोने लगी।”

तभी आकाश अपने कमरे से बाहर आता है।

माँ कहाँ हो?

जल्दी करो मुझे एयरपोर्ट जाना है, फ्लाइट पकड़नी है।

अपने आंसू को जल्दी से पल्लू से छुपाती हूई मुस्कुराते हुए कहती है,हां मुझे पता है इसीलिए तुम्हारा नाम मैंने आकाश रखा है, तुम गगन में उड़ो।

मैं चाहती थी कि तुम एयर फोर्स में जाओ । तुम्हारे पिताजी, दादाजी और नाना जी बरसों से देश की सेवा करते रहे है। बस तुम्हारे पिताजी को ही सरकारी नौकरी करनी थी।

तुम इतना सब कुछ जानने के बाद भी क्यों रोती रहती हो? सुबह से मेरे लिए इतना नाश्ता खाना क्यों बना रही हो?

बेटा तू एक मां के दिल को नहीं समझेगा कि उसके दिल पर क्या बीतती है, तू चला जाएगा तो यह सब मैं कहां बनाती हूं, तेरे बहाने मैं भी खा लेती हूँ।

रोते हुए नम आंखों से उसका सामान पैक करती है और कहती है कि बेटा क्या करूं?

मैं तुम्हारे पास रहूंगा तो तुम मुझे भगा दोगी, अब जा रहा हूं तो उदास हो।

क्या करूं बेटा? तुम्हारे भविष्य के लिए मुझे अपने दिल पर पत्थर रखना पड़ेगा । बेटा तुम बारिश की एक बूंद की तरह रहना जो हर जगह गिरकर सबको तृप्ति करती है। आकाश चरण स्पर्श करते हुए बोलता है – मां मुस्कुराते हुए विदा करो, अपना सामान उठाकर टैक्सी की ओर जाता है।

शारदा उसे मन ही मन ढेर सारा आशीर्वाद देती है और कहती है बेटा जीवन में हमेशा आगे बढ़ो कभी अपने कदम पीछे की ओर मत रखना खूब तरक्की करो।

उमा मिश्रा© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈