डॉक्टर मीना श्रीवास्तव

☆ “विश्व साइकिल दिवस’-३ जून २०२३- उत्तरार्ध” 🚴🏾‍♂️☆ डॉक्टर मीना श्रीवास्तव ☆

नमस्कार मित्रों,

इस भाग में मैं ‘साइक्लोफन-२०२३’ के हमारे अनुभवों और ३० अप्रैल २०२३ को आयोजित समापन समारोह का वृत्तांत प्रस्तुत कर रही हूँ| श्रीमती आरती बॅनर्जी ने डॉ शीतल पाटील के साथ आयोजित किया हुआ ‘सायक्लोफन-२०२२’ बेहद सफल रहा था। इसलिए दोनों ने इस साल भी ऐसा ही आयोजन किया। पिछले साल की तरह ही इसे भी निवासियों से अच्छी प्रतिक्रिया मिली। इसमें ६५ सदस्यों ने भाग लिया। खुशी की बात यह थी कि, इस आयोजन को बच्चों से बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली। जैसा कि पिछले भाग में उल्लेख किया है, ‘विश्व वसुंधरा दिवस’ (२२ अप्रैल २०२३) से प्रत्येक सदस्य अपनी उम्र और क्षमता के अनुसार पैदल चल रहा था या साइकिल चला रहा था।

साइकिल सवारों में से बारह लोग सामूहिक साइकिल की सवारी का आनंद उठाने हेतु २९ अप्रैल को सुबह-सुबह ठाणे के निकट एक खाड़ी पर पहुँच गए| ग्रुप राइड की समन्वयक आरती ने कहा, ‘यह अनुभव अविस्मरणीय था क्योंकि, वहाँ प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय मॅरेथॉन धावक गीतांजलि लेंका से मिलने का अवसर मिला| वे वहाँ एक मॅरेथॉन कार्यक्रम में भाग ले रही थीं। हमने उनके साथ बातचीत की और तस्वीरें भी लीं।’

देखते देखते ३० अप्रैल का आखिरी दिन आ पहुँचा| २२ से ३० अप्रैल, २०२३ तक रुणवाल गार्डन सिटी में साइकिलिंग और वॉकिंग के उपक्रम ‘सायक्लोफन-२०२३’ का ३० अप्रैल, २०२३ को हमारे बगीचे के हरे-भरे वातावरण में खूबसूरती से समापन हुआ। समापन एवं अभिनंदन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. केतना अतुल मतकर उपस्थित रहीं। पर्यावरणविद् और जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ डॉ. केतना, ठाणे स्थित पर्यावरणीय परामर्श कंपनी, ‘सायफर एन्व्हायर्नमेंटल सोल्युशन्स’ की  संस्थापक और प्रबंध निदेशक हैं। डॉ. केतना माइक्रोबायोलॉजी में पीएचडी हैं और उन्हें पर्यावरण के क्षेत्र में २७ साल का विविध और व्यापक अनुभव है। डॉ. केतना मटकर ने कहा, ‘बचपन में साइकिल चलाना और पैदल चलना ही हमारे परिवहन के पसंदीदा साधन थे। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया और हम बडे होते गए, हम इस अनायास होने वाले व्यायाम से दूर होते गए। किसी न किसी प्रकार हम बदलती परिस्थिति, समय की कमी, आरामदायक जीवन शैली तथा अपनी सुविधा का हवाला देकर आधुनिक मोटर वाहनों को प्रधानता देते हैं|’ डॉ. केतना ने जलवायु परिवर्तन के कारण, ग्लोबल वार्मिंग, बढ़ते प्रदूषण, इन सबके कारण और इन कठिन समस्याओं के समाधान करने के उपायों के बारे में बताया। उनके अनुसार, चलने और साइकिल चलाने जैसे शाश्वत गतिशीलता में सबसे महत्वपूर्ण विकल्पों को हम आसानी से अपना सकते हैं।

डॉ. केतना के सरल, सीधे और विनम्र व्यक्तित्व ने हम सबको बहुत प्रभावित किया| इतनी जानकार होने के बावजूद उन्होंने हमारे साथ बहुत ही सरल भाषा में बातचीत की| बच्चे और बडे, हर सदस्य से उन्होंने मौसम, प्रदूषण, साइकिल चलाने और पैदल चलने के लाभ जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर प्रश्न पूछे, उन्हें बोलने पर प्रवृत्त किया और फिर विशेषज्ञ के नाते इन सभी सवालों के जवाब विस्तार से दिए। वे इस विषय पर हमारे ज्ञान का परीक्षण करना नहीं भूलीं। हमने उनके द्वारा ऑनलाइन साझा किए गए गूगल फॉर्म के प्रश्नों के उत्तर देकर उन्हें भेज दिये|

इस अवसर पर प्रतिभागियों को मेडल और प्रमाणपत्र देकर सम्मानित किया गया। हमारे एक छोटे जोशीले सदस्य इशान मोहिते ने दिए गए ९ दिनों में १८९ किमी तक साइकिल चलाकर प्रथम पुरस्कार जीता! इस आयोजन में उत्साहपूर्वक भाग लेने वाले सभी सदस्यों को हार्दिक बधाई तथा हमारे प्रिय आयोजकों आरती और शीतल को इस कार्यक्रम को सफलतापूर्वक चलाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद| साथ ही गर्मजोशी से उनकी सहायता करनेवाले उत्साही स्वयंसेवी बच्चों को भी बहुत-बहुत धन्यवाद।

प्रिय पाठकों, जो लोग अपनी और दूसरों की हैसियत को एक महंगी कार की कीमत से मापते हैं, वे वास्तव में अपने जीवन के साथ भारी कीमत चुका रहे हैं। अब इस मानसिकता को 360 डिग्री से उल्टा घुमाने का समय आ गया है। समय की मांग है कि इस दुष्चक्र से जल्द से जल्द बाहर निकला जाए।

चलते चलते-चलता है जी!

मित्रों, यह ऐसा सवेरे सवेरे इतनी जल्दी उठना है और फिर चलना है, भले ही यह अपनी भलाई के लिए ही क्यों न हो, यह मुझे जानलेवा सज़ा लगती है| परन्तु अब ओखली में सर डाल दिया, तो चलना ही पड़ेगा! ऐसा करते-करते मैंने इस चुनौती को पूरा करने के लिए एक बार चलना शुरू किया और अगले दिन मुझे खुद ब खुद चलने की प्रेरणा मिली। आखिरकार मैंने इसे निर्धारित समय सीमा में पूरा भी कर लिया| उसके लिए रोज मिलने वाले kudos और अन्तिम दिन मिला मैडल मेरे लिए बेशकीमती है!

ठाणे की सुंदरता को वृद्धिंगत करने वाले भित्ति चित्र

प्रभात बेला में की गई इस सैर का अनुभव असाधारण था। मैं पहले भी इन्हीं सड़कों पर चली हूँ, लेकिन शायद खयालोंमें खोई हुई या हो सकता है कि, इन भित्तिचित्रों को अनदेखा कर ऑटो या कार से गुजर रही थी। लेकिन इसी ‘सायक्लोफन-२०२३’ के खातिर चलते हुए इन तस्वीरों की खूबसूरती और मायने को आँखों से देखा, फोटो में कैद किया और दिलोदिमाग में बसा लिया। इन चित्रों को बनाने वाले कलाकारों की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम ही होनी चाहिए। लेकिन संबंधित राजनेता और अधिकारियों में भी ठाणे की सुंदरता को वास्तविक रूप में बढ़ावा देने की तमन्ना पनप उठी, यह देखकर बड़ा आनंद आया| यहाँ वहाँ पान की पिचकारियों से दीवारें रंगीन बनाने वाले जो भी तमाकू (१२० और बहुत कुछ!), बीड़े के पान और जर्दा के शौक रखने वाले  महान महानुभावों को इस उपक्रम के कारण बड़ी दिक्कतें झेलनी पडी होंगी यह बिलकुल तय है! परन्तु मैं इन लोगों के सौंदर्य बोध के लिए शुक्रगुजार हूं, क्योंकि, मैंने जो भी तस्वीरें देखीं, उनको किसीने भी विकृत करने की कोशिश करते हुए मैंने नहीं पाया| खास बात तो यह है कि, यहां ‘थूकिये मत’ जैसे बोर्ड भी नहीं लगे थे।

मित्रों, इन चित्रों के विभिन्न विषयों को देखकर मैंने यह अनुभव किया कि, इन कलाकारों की कला में एक विचारधारा भी है| मैं भी कैनवास पर पेंटिंग करती हूँ| लेकिन उसका आकार सीमित होता है, इसलिए मेरी पहुँच उसके दायरे में है। परन्तु भित्ति चित्र बनाने के लिए एक अलग ही आयाम की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, यदि समाज को इससे आलोकित करना है, तो उस परिणाम को साध्य करने के लिए प्रभावी रंग, व्यक्तित्व और आकर्षक रचना बिलकुल आवश्यक है! इन चित्रों में आवागमन करते हुए राहगीरों का ध्यान आकर्षित करने की क्षमता होनी चाहिए। इसके अलावा, ये पेंटिंग तूफान, तेज हवा, बारिश आदि के आक्रमण को झेलकर दीर्घ समयसीमा तक टिकाऊ होनी चाहिए। साथ साथ आपको टिन शेड पर भी पेंटिंग की तैयारी रखनी होगी। दोस्तों, मैं इस लेख के साथ कुछ सीमित तस्वीरें साझा कर रही हूँ। ये सभी हमारे परिसर और आसपास के क्षेत्र की दीवारों पर चित्रित हैं। इन चित्रों के विषय बड़े ही प्यारे हैं| चित्र चित्रित करती किशोरी, साइकिल पर सवार युवक और युवति, झूले पर मुक्त भाव से झूलती बालिका, सुंदर फूल, पशु, पक्षी, जलीय जीव और हरित वसुन्धरा आदि।

ये तमाम कलाकृतियाँ मनमोहक तो हैं ही, इसके अलावा, मोबाइल फोन के घेरे से बाहर की दुनिया का रसीला लुफ्त उठाते हुए ये प्रकृति-प्रेमी व्यक्तिचित्र पर्यावरण को संरक्षित करने और पृथ्वी की हरियाली को वृद्धिंगत करने का सुन्दर सन्देश चौबीसों घंटे देते रहते हैं। एक खास दिन ‘विश्व वसुंधरा दिवस’ (Earth day) मनाने वालों का उत्साह महत्वपूर्ण है (यह साइक्लोफन उसका ही एक हिस्सा है)। वह अपने स्थान पर बना रहे, परन्तु इन भित्ति चित्रों का स्थायी संदेश कितना महत्वपूर्ण है उसे समझना और उसपर गहरा सोचविचार करना जरुरी है, क्योंकि अगर हम इस हरी-भरी धरती को बचाना चाहते हैं और इसकी हरियाली को वृद्धिंगत करना चाहते हैं तो कितना अच्छा होगा अगर ऐसे मानों शिलालेख जैसे चित्र हों। हमारे परिसर की सडक के दोनों ओर हरी झाड़ियाँ और वृक्ष हैं। सुबह-सुबह उनकी मेहराबों (कमान) से गुजरती हूँ तो कितनी प्रसन्नता होती है, लिखने के लिए विचारों की घनघोर घटा उमडती है, उत्साह आ जाता है और नवनवोन्मेषी कल्पनाएं मन में हिलोरें लेने लगती हैं। गहन छाया प्रदान करने वाली इस हरीतिमा का कृपाछत्र हम मनुष्यों के लिए अनंत वरदान ही है।

दोस्तों, कहा जाता है कि ‘शरीर भगवान का मंदिर है’! बेशक, एक स्वस्थ शरीर का होना स्वस्थ दिमाग की पहली सीढी है। उसके लिए साइकिल या दो पाँवों के दोपहिया वाहन की सवारी चलाते रहना अनिवार्य ही समझें| जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह शाम!

धन्यवाद! 🌹

डॉक्टर मीना श्रीवास्तव

ठाणे                                         

दिनांक-४ जून २०२३

फोन नंबर: ९९२०१६७२११

टिप्पणी:

  • इस लेख के लिए इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी का उपयोग किया गया है|
  • इस लेख के साथ शामिल की गई दीवार पेंटिंग की तथा अन्य तस्वीरें और विडिओ निजी हैं। ये खूबसूरत भित्ति चित्र हमारे परिसर के आसपास के क्षेत्र के हैं।
  • यह लेख मेरे नाम और फोन नंबर के साथ ही अग्रेषित कीजिए।

समापन समारोह ३० अप्रैल २०२३ की लिंक 👉 समापन समारोह ३० अप्रैल २०२३

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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