हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार जन्म दिवस विशेष – 85 पार – साहित्य के कुंदन ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ – संपादक ई-अभिव्यक्ति (हिन्दी) ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है डॉ कुंदन सिंह परिहार जन्म दिवस पर विशेष – 85 पार – साहित्य के कुंदन। 

? डॉ कुंदन सिंह परिहार जन्म दिवस विशेष – 85 पार – साहित्य के कुंदन ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ?

☆ कुंदन सिंह परिहार … तय करना कठिन है कि वे पहले व्यंग्यकार हैं या कहानीकार ☆

(इस संदर्भ में ई-अभिव्यक्ति ने 85 पार – साहित्य के कुंदन शीर्षक से फ्लिप बुक एवं प्रिंट स्वरूप में प्रकाशित किया है।)

ई-अभिव्यक्ति के माध्यम से हर हफ्ते वरिष्ठ व्यंग्यकार, कहानीकार श्री कुंदन सिंह परिहार जी को पढ़ने के अवसर सारी दुनियां को हर हफ्ते मिलते हैं। अब तक साप्ताहिक स्तंभ में उनकी २३८ रचनायें हम प्रकाशित कर चुके हैं। उनकी उम्र ८५ पार हो रही है, उनकी रचनायें पढ़ें तो स्पष्ट समझ आता है कि वे खामोशी से दुनियां को पढ़ कर ही परिपक्व अनुभव से लिखते हैं। उनकी एक कहानी है दद्दू। समाज में बुजुर्गों की जो स्थितियां बन रही हैं यह कहानी उस परिवेश, परिस्थितियों को रेखांकित करती है। परिहार जी के पांच कहानी संग्रह तथा तीन व्यंग्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, उनका व्यंग्य संग्रह नबाब साहब का पडोस चर्चित रहा है। तीसरा बेटा, हासिल, वह दुनिया, शहर में आदमी एवं कांटा शीर्षकों से छपे उनकी कहानियों एवं विशेष रूप से लघुकथाओ में उनकी व्यंग्यात्मक लेखन शैली दृष्टिगत होती है। उन्हें १९९४ में ही हिन्दी साहित्य सम्मेलन का वागीश्वरी सम्मान प्राप्त हो चुका है। साहित्य की राजनीति और खेमेबाजी से दूर वे चिंतनशील, शांत लेकन करते नजर आते हैं। उनके लेखन में किंचित वामपंथी प्रभाव भी दिखता है। उनका समूचा जीवन जबलपुर में व्यतीत हुआ है, वे लगभग चालीस वर्षो तक महाविद्यालयीन शिक्षा से जुड़े रहे और वर्ष २००१ में जबलपुर के प्रतिष्ठित जी एस कालेज के प्राचार्य पद से सेवा पूरी कर अब पूर्णकालिक रचनाकार के रूप में साहित्यिक योगदान कर रहे हैं। उन्होंने अपने शैक्षिक जीवन में भांति भाति के छात्रों के जीवन को सकारात्मक दिशा दी। घर परिवार में भी वे साहित्यिक वातावरण और संस्कार अगली पीढ़ी तक पहु्चाने में सफल रहे हैं।

ई-अभिव्यक्ति में उनके साहित्य संसार की रचनाओ, कहानियो॓, व्यंग्य का इंतजार पाठक हर हफ्ते करते हैं।

🙏💐 ई-अभिव्यक्ति परिवार उनके सुखद, स्वस्थ्य दीर्घायु जीवन और सकारात्मक शाश्वत लेखन की शुभकामनाएं 💐🙏

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© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈