श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “दो जून की रोटी।)  

? अभी अभी # 60 ⇒ दो जून की रोटी? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

दीवाना आदमी को बनाती हैं रोटियाँ ! पूरी दुनिया में लड़ाई का कारण सिर्फ़ रोटी है। इंसान सब कुछ कर सकता है, भूखा नहीं रह सकता ! रोटी का महत्व वे लोग नहीं जान सकते, जो रोज पिज़ा, बर्गर खाते हैं। एक देश में अकाल पड़ा ! रानी के पास शिकायत गई, लोगों के पास खाने को रोटी नहीं है। ये लोग केक क्यों नहीं खाते, रानी ने मासूमियत से पूछा।

आज दो जून है ! हम ईश्वर को धन्यवाद देते हैं कि वो हमें दो जून की रोटी नसीब करवा रहा है। आज की रोटी में ऐसा क्या खास है, रोटी को उलट-पलट कर देखें। कुछ नज़र नहीं आएगा। ।

जून माह साल में एक बार आता है। दूसरा जून फिर अगले साल आएगा। बीच में पूरा एक बरस है। ईश्वर हमें इस जून को रोटी दे रहा है, दूसरा जून जो अगले साल आ रहा है, तब तक हमारी रोटी की व्यवस्था हो जाए, बस यही दो जून की रोटी है।

साईं इतना दीजिये, जा में कुटुंब समाए, मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाए ! पहले लोग साल भर का अनाज घर में भर लेते थे।

दो जून का इंतज़ाम हो गया।

पकवान न सही, प्याज, नमक से भी रोटी खाकर भूख मिटाई जा सकती है। सिर्फ दो रोटी का सवाल है। ।

आजकल लोग दो जून की चिंता नहीं करते ! बहुत दिया है देने वाले ने तुझको। साल भर का अनाज कौन अवेरे ! बाज़ार में इतने रेडीमेड आटे उपलब्ध हैं, अन्नपूर्णा, शक्तिभोग आदि आदि, कौन अनाज की साल भर देखभाल करे। जब भी आटा खत्म हुआ, बिग बाज़ार है, सुपर मार्केट है। और नहीं तो इतनी होटलें तो हैं ही। आज का डिनर बाहर ही सही।

हम शहरी लोग हैं। एक गरीब किसान पर क्या गुजरती है, जब उसकी खड़ी फसल सिंचाई के अभाव में जल जाती है, अथवा तेज़ आँधी बारिश में तबाह हो जाती है। वह कहाँ से लाएगा दो जून की रोटी ? वह तो जब अनाज बेचेगा तब ही उसकी रोटी की व्यवस्था होगी।।

एक मज़दूर जो रोज पसीना बहाता है, रोज कमाता है, रोज खाता है। उसके दो जून की व्यवस्था कौन करता है। उसे तो रोज कुआ खोदना है।

मैं आज दो जून की रोटी खा रहा हूँ। मैं चाहता हूँ यह दो जून की रोटी हर भारतवासी को नसीब हो। किसी को रोटी के लिए भीख न माँगनी पड़े। हर इंसान अपने दो जून की रोटी की व्यवस्था कर पाए, तो मैं समझूँगा स्वर्ग धरती पर आ गया। बड़ी महँगी है, मूल्यवान है, स्वादिष्ट है, यह दो जून की रोटी। आप भी खाकर देखें, किसी को खिलाकर देखें। ।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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