हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 317 ⇒ आम चुनाव… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “आम चुनाव ।)

?अभी अभी # 317 ⇒ आम चुनाव ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

गर्मियाँ शुरू। अगले माह में आम चुनाव ! मुझे चुनाव से अधिक रुचि आम में रहती है। आम चुनाव तो पाँच वर्ष में एक बार आते हैं, हम तो हर वर्ष अपनी पसंद के आम चुन-चुनकर खाते हैं।

अभी आम का मौसम नहीं, आम चुनाव का मौसम है। आम ही नहीं, चुनाव के वक्त तो आदमी भी बौरा जाता है। पसंद अपनी अपनी ख़याल अपना अपना।।

हमारे यहाँ नंदलालपुरे में आमों की मंडी लगती थी। मुझे चुनाव का अधिकार नहीं था ! फिर भी अपने पिताजी की उँगली पकड़, मैं आम चुनाव के लिए निकल पड़ता था। सब तरफ आमों की खुशबू। आम के बाज़ार से, अच्छे आमों का चुनाव कोई हँसी खेल नहीं। हर दुकानदार अपने अपने आमों की ढेरी सजाए, ग्राहक ढूंढा करता था।

आम, चूसने वाले भी होते थे, और काटने वाले भी ! चुनाव आपको करना पड़ता था, आपको चूसने वाला चाहिए या काटने वाला।

अंगूर की तरह कभी कभी आम भी खट्टा साबित हो जाता था, जब चुनाव सही नहीं होता था। अपने आम को कोई खट्टा नहीं कहता। दुकानदार एक आम उठाकर देता था, लीजिये चखिए ! आप हाथ आगे कर देते ! ऐसे नहीं, पूरा आम चखिये। आप पर आंशिक प्रभाव तो पड़ ही चुका होता था। दिखाने वाला आम मीठा ही होता है। घर आकर पता चलता था, हमारा चुनाव गलत था।।

70 साल से आम खा रहा हूँ। आम चुनाव में भी भाग ले रहा हूँ। आज तक आम की पहचान नहीं कर पाया। आखिर आम होते ही कितने हैं। गुजरात का अगर केसर है, तो महाराष्ट्र के रत्नागिरी का हापुस। जो लोग महँगी पौष्टिक बादाम नहीं खा पाते, वह सीज़न के बदाम आम खाकर ही संतोष कर लेते हैं। दशहरी आम तो मानो शहद का टोकरा हो। तोतापरी तो नाम से ही लगता है, सिर्फ तोतों के लिए बना है।

आम फलों का राजा है। आम के चुनाव में अगर बनारस के लंगड़े का जिक्र न हो, तो चुनाव अधूरा है। चाहो तो काटकर खाओ, चाहो तो रस बनाओ। लेकिन आश्चर्य है कि आज तक किसी ने इसके नाम पर आपत्ति नहीं ली है। बनारस का आम, और लंगड़ा ? हो सकता है, इस आम चुनाव के पश्चात बनारस के आम को भी दिव्यांग आम घोषित कर दिया जाए।।

अभी तो अमराइयाँ बोरा रही हैं। आम और आम चुनाव का वास्तविक मज़ा तो मई माह में ही आएगा। सूँघ सूँघ कर, चख चख कर चुनाव करें, कहीं आम खट्टे न निकल जाएं। कुछ लोग आम का अचार डालते हैं ! उन्हें सख्त हिदायत दी जाती है कि अच्छे आमों का ही चयन करें।

अचार ऐसा डालें, जो टिकाऊ हो। ध्यान रहे ! आमों का मध्यावधि चुनाव नहीं होता।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈