हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 300 ⇒ महात्मा और मोबाइल… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “महात्मा और मोबाइल।)

?अभी अभी # 300 ⇒ महात्मा और मोबाइल? श्री प्रदीप शर्मा ?

आत्मा तो अदृश्य है, उसे किसने देखा है, लेकिन महात्मा को तो आप देख भी सकते हैं, और छू भी सकते हैं। अगर महात्मा का संधि विच्छेद किया जाए तो वह महान आत्मा हो जाता है। आत्मा छोटी और बड़ी भी होती है, हमें मालूम न था। एक महात्मा की आत्मा कितनी महान हो सकती है, हम तो सोच भी नहीं सकते।

ईश्वर तो खैर निरंजन, निराकार है, फिर भी सब उसे ही ढूंढ रहे हैं, जब कि ईश्वर तुल्य कई महान आत्माएं हमारे आसपास विचरण कर रही हैं, जिनमें से कुछ अगर आपको ईश्वर का पता बता सकती हैं, तो कुछ में हो सकता है, साक्षात ईश्वर ही विद्यमान हो।।

ऐसा माना जाता है कि एक महात्मा ईश्वर के अधिक करीब होता है और शायद इसीलिए हर जिज्ञासु और मुमुक्षु महात्मा द्वारा बताए मार्ग पर चलना चाहता है। इधर उसने ध्यान लगाया और उधर वह ईश्वर से जुड़ा। कवि की तरह भी वह कहीं आता जाता नहीं है, फिर भी उसकी पहुंच रवि से भी आगे तक रहती है।

एक संसारी अगर संसार में उलझा रहता है तो महात्मा ईश्वर द्वारा उसे प्रदत्त शुभ कार्य में। वह तो वीरान जंगल में रहकर भी सातों लोकों की यात्रा अपने ध्यान धारणा और समाधि के दौरान कर लेता है फिर भी जन जन के कल्याण के संकल्प के कारण उसे हम जैसे क्षुद्र संसारी जीवों के संपर्क में रहना पड़ता है और इसी कारण हमें अपने आसपास इतने मठ, आश्रम और महात्माओं की कुटियाएं नजर आती हैं।।

आप इन्हें ईश्वर के दूत कहें अथवा मैसेंजर, केवल हमारे आत्मिक उत्थान के लिए ही तो इन्होंने यह देह धारण की है। हम इतने पहुंचे हुए भी नहीं कि बिना आधुनिक संसाधनों के इन तक पहुंच भी पाएं। मजबूरन हमारी ही सुविधा के खातिर इन्हें भी आजकल गाड़ी घोड़े और मोबाइल जैसे माध्यमों से भी जुड़ना पड़ता है।

आप अगर अपने पुरुषार्थ अथवा सांसारिक कर्तव्य में अनवरत व्यस्त हैं, तो टीवी और सोशल मीडिया पर इनके कथा प्रवचन सुन सकते हैं, फोन से संपर्क कर इनके आश्रमों में सत्संग हेतु जा सकते हैं, दान अनुदान द्वारा इनकी सेवा कर पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। ये आजकल इतने डिजिटल हो गए हैं कि चुटकियों में आप इनके बैंक खातों में अपनी सेवा भेंट ट्रांसफर कर सकते हैं।।

हर महात्मा का आजकल अपना आश्रम है, अपने शिष्य हैं और अपनी वेबसाइट है। दंड कमंडल के साथ, झोले में एक अदद मोबाइल आम है। साधु, संत और महात्मा का भेद तो कब का मिट चुका है।

प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी की तर्ज पर प्रभु जी हम शिष्य तुम स्वामी।

ईश्वर के नेटवर्क से हमारे मोबाइल का संपर्क कोई महात्मा ही करवा सकता है। भिक्षा, दीक्षा और दान दक्षिणा आजकल सब ऑनलाइन उपलब्ध है। आप भी ट्राई करें, किसी महात्मा का मोबाइल। हो सकता है, बात बन जाए।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈