हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 238 ⇒ दाल रोटी खाओ… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “दाल रोटी खाओ ।)

?अभी अभी # 238 ⇒ दाल रोटी खाओ… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

जिनको प्रभु का गुणगान करना है, उन्हें और चाहिए भी क्या ! ईश्वर हमारे देश के सत्तर करोड़ गरीबों को मुफ्त राशन यूं ही नहीं प्रदान कर रहा, २२ जनवरी को प्रभु श्री राम के गुणगान का यह स्वर्णिम पल है। ओ भाभी आना, जरा दीपक जलाना, आज घर घर अयोध्या के प्रभु श्री राम विराजेंगे।

दाल रोटी तो मैं भी खाता हूं, लेकिन मुझ अज्ञानी का ध्यान प्रभु के गुणगान की ओर तो कम रहता है और भोजन की गुणवत्ता और स्वाद और खुशबू की ओर अधिक रहता है। गेहूं कौन से हैं, अरहर की दाल तीन इक्का है कि नहीं, चावल कौन सा है, काली मूॅंछ, अथवा बासमती।।

ईश्वर सगुण हो अथवा निर्गुण, इंसान में तो, प्रकृति की तरह तीन गुण ही होते हैं, सत, रज और तम। यानी जैसा हम अन्न खाते हैं, वैसा हमारा मन बनता है, यानी सात्विक, राजसी अथवा तामसी। हम ज्यादा झमेले में नहीं पड़ते, बस दाल रोटी शाकाहार है, सात्विक आहार है, मस्त दाल रोटी खाओ, प्रभु के गुण गाओ।

लेकिन यह चंचल, प्रपंची मन कितने किंतु, परंतु और तर्क वितर्क लगाता है। मालूम है, दाल का क्या भाव है। हम तो दाल में देसी घी का तड़का लगाते हैं, और वह भी हींग जीरे के साथ। अब हम प्रभु को याद करें या बढ़ती महंगाई को।।

जिस तरह राम दरबार में, राम लक्ष्मण जानकी और जय हनुमान जी की बोली जाती है, उसी तरह हमारी रसोई के तड़के में असली घी के साथ हींग जीरा और राई का होना भी जरूरी है। मंदिर में धूप बत्ती की महक की ही तरह रसोई में हींग जीरे के बघार की खुशबू फैल जाती है। बस राम का गुणगान और धन्यवाद करने का मन करता है ;

राम का गुणगान करिए

राम प्रभु की भद्रता का

सभ्यता का ध्यान धरिए…

एक सुहागन के लिए जितना एक चुटकी भर सिन्दूर का महत्व है, उतना ही महत्व चुटकी भर हींग का घर गृहस्थी में है। लेकिन यह चुटकी आजकल बड़ी महंगी पड़ रही है। कभी सौ दो सौ रुपए किलो वाला जीरा आज चार अंकों को छूने की कोशिश कर रहा है, तो पूरी दुनिया में हींग तो ग्राम और तोला में बिक रही है। पहले इसे तौलने के लिए पीतल की छोटी सी तराजू आती थी, और छोटे छोटे ग्राम वाले पीतल के ही बांट। सोने की तरह तुलती थी यह हींग।।

हमें रंग चोखा लाने के लिए नहीं चाहिए फिटकरी, लेकिन बिना हींग के हम नहीं रह सकते। कल पुष्प ब्रांड की बांधनी हींग, पाउडर वाली, ५० ग्राम का भाव पूछा तो ₹३७५ !लेकिन यह हींग भी कहां असली होती है। डले वाली शुद्ध, खुशबूदार हींग के तो अलग ही ठाठ हैं, दस ग्राम शुद्ध हींग तीन चार सौ रुपए से कम नहीं।

अब इतनी महंगी हींग और जीरा खाकर भी अगर कोई महंगाई का रोना ना रोकर प्रभु का गुणगान करे, तो बस समझ लीजिए, उसके अच्छे दिन आ गए।।

नया वर्ष दस्तक दे रहा है, और उधर अयोध्या में इतिहास रचा जा रहा है। घर घर घी के चिराग जलें, हर मंदर और प्रत्येक मन मंदिर में भी प्रभु श्रीराम का वास हो, रामराज्य फिर से आए। नहीं चाहिए हमें घी और दूध दही की नदियां, बस सब की दाल में हींग जीरे का तड़का हो, सब प्रेम से दाल रोटी खाएं और प्रभु श्रीराम के गुण गाएं। जय रामजी तो बोलना ही पड़ेगा ..!!

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈