हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #163 – 49 – “ख़्वाब में तेरे जागते हुए सोते हैं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “ख़्वाब में तेरे जागते हुए सोते हैं…”)

? ग़ज़ल # 49 – “ख़्वाब में तेरे जागते हुए सोते हैं …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

मैंने तो सच कहा तुम्हें बहाने लगे,

इश्क़ है तुम्हें कहने में ज़माने लगे।

नज़दीक आओ ज़रा पी लें इन्हें,

वस्ल में  ये आँसू क्यों बहाने लगे।

ख़्वाब में तेरे जागते हुए सोते हैं,

सोने दो यार  क्यों जगाने लगे।

हम समझे थे  तुम्हें नातजुर्वेकार,

बातों में यार तुम बड़े सयाने लगे।

बेकार का झगड़ा है  ये वस्ल-जुदाई,

शुकूं मिला जाम पे जाम चढ़ाने लगे।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈