हिंदी साहित्य – व्यंग्य ☆ “बेगुनाही की सजा” ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ व्यंग्य – “बेगुनाही की सजा 📚 सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

‘—- ज़ाहिर सी बात है जो अंधेरे में देख सकता है उसे ज्ञानी कहते हैं। ज्ञान के आलोक में तीसरी आँख खुल जाती है। ऐसे में उल्लू की खूबियों के मद्देनज़र उसे उल्लू (मूर्ख) उलूक या घुबड़ कहना सरासर अपमान है। लक्ष्मीजी के पर्यटन मंत्री की ऐसी अवमानना। ऐसी तौहीन !

मुंबई एअरपोर्ट पर जेट एअरवेज़ के बोइंग 777 के काॅकपिट में उल्लू घुस गया। खबर बन गई।खबर तो उल्लुओं (परंपरागत अर्थ में) की ही बनती है। उल्लुओं को पेड़ों पर होना चाहिए पर 21 वीं सदी में विकास चरम पर है। अतः उसका सोचना भी स्वाभाविक है। शहर की चकाचौंध और पाँच सितारा सुविधाओं पर उल्लुओं का भी हक है। यूं कहें कि उल्लुओं का ही हक है।

समझ में नहीं आता आखिर उल्लू जेट से क्यों उतारा गया।शायद उसने हवाई चप्पल नहीं पहनी थी। कहते हैं देश में ऐसा समाजवाद आएगा कि हवाई चप्पल वाले हवाई यात्रा कर सकेंगे। वे हवाई किले भी बना पायेंगे। श्रीदेवी वाला मिस्टर इंडिया का हवा हवाई गाना भी गा सकेंगे।

जेट से निकाल बाहर करनेवाले कर्मचारी के हाथों में उल्लू बेहद भोलीभाली सवालिया मुद्रा में नज़र आया। बस हैरान परेशान सा अपनी गोल गोल आँखों से मटर मटर देखता रहा। वह अभी तक समझ नहीं पाया है  कि सारे गुनहगार देश से बेखौफ बेखटके उड़ जाते हैं । फिर लौटकर नहीं आते। उसने तो कोई गुनाह नहीं किया। वक्त बुरा हो तो बेगुनाही भी गुनाहों में शुमार की जाती है। नसीब कि उसे जेल में नहीं डाला। ई डी नहीं छुलाई।

उल्लू सोचने लगा अच्छा हुआ वह दिन में ढंग से देख नहीं पाता वर्ना उसे जाने क्या क्या देखना पड़ता। ये आदमजात भी इतनी बेढंगी और दोगली है कि क्या कहने। मूर्ति बनाकर घर में रखती है, दीवाली पर पूजा करती है, और जिन्दा उल्लुओं को दुत्कारती है। उन्हें गाली बतौर इस्तेमाल करती है। तांत्रिक भी उल्लुओं के जरिए अपना उल्लू सीधा करते हैं।

उल्लू मन में सोच रहा था – मैं काॅकपिट में ही घुसा था ना। किसी की कुर्सी पर तो नहीं बैठा था। अजीब लोग हैं एक तरफ तो कहते हैं मेरे रहने से किसी की बुरी नज़र नहीं लगती। मैं जेट में रहता तो सभी सुरक्षित और बेफिक्र रहते पर नहीं—आदमी की बुद्धि कब कौन सा रंग बदल ले कहना मुश्किल है। गिरगिट भी आदमी से चिढ़े हुये हैं। वे भी मानहानि का दावा दायर करने की सोच रहे हैं।

काश मुझे मनुष्य की भाषा आती ! टी वी के बेहूदे बेसुरे अभद्र डिबेट में सभी की पोल खोलकर रख देता। “पैचान कोन” वाले काॅमेडियन की तर्ज पर जरूर पूछता “बोलो बोलो उल्लू कौन!”

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©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈