हिंदी साहित्य – आलेख ☆ विश्व पृथ्वी दिवस – मेरी मर्ज़ी ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ विश्व पृथ्वी दिवस – मेरी मर्जी ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

एक और पृथ्वी ढूँढ ली हमने।पहली तो संभाली न गई। चीन ने चेंगडू में चाँद बना लिया।  सूरज भी शायद। हम भी 2023 में चाँद पे जाने वाले थे। पानी लाने वाले थे मंगल से।

ब्रह्माण्ड ने पृथ्वी हमें खैरात में दी है। उसकी कीमत कैसे पता होती।

           एक नीला ग्रह

              गेंद जैसा बस।

साँसों का तरन्नुम, सपनों की श्वेतिमा,नेत्र मंजूषा में डूबती शाम के मंजर,कर्ण कुहरों में पेड़ों की सरगोशियां ,पहाड़ों तक पलकों का उठना,नज़रों से सुरचाप उठा लाना, घाटियों से मीठी सरगम का उमड़ना, झरने की बांहों में समा जाना——–

   सब कुछ उसी के बूते

🌹 हमने कहा – मैं जो चाहे करुं मेरी मर्जी

🌹 उसने भी दोहराया मैं जो चाहे करुं मेरी मर्जी

विश्व पृथ्वी दिवस मुबारक हो।

हमारे मन प्लास्टिक से मुक्त हों।

जय जय महीयसी मही

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©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈