☆ हैल्पिंग हेण्ड्स – फॉरएवर वेल्फेयर सोसायटी ☆ 

डॉ. विजय तिवारी ‘किसलय

(www.e-abhivyakti.com की ओर से मानव कल्याण एवं समाज सेवा के लिए निःस्वार्थ भाव से समर्पित संस्था “हेल्पिंग हेण्ड्स फॉरएवर वेलफेयर सोसायटी” के सदस्यों का उनके चतुर्थ स्थापना दिवस के अवसर पर हार्दिक अभिनंदन।   इस विशेष अवसर  पर  कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. विजय तिवारी ‘किसलय’ जी के आख्यान को उद्धृत करने में प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं।)  

 

हेल्पिंग हेण्ड्स फॉरएवर वेलफेयर सोसायटी का आज हम सभी चतुर्थ स्थापना दिवस मनाने हेतु आत्मीय एवं पारिवारिक रूप से एकत्र हुए हैं। आप सभी को हृदयतल से बधाई।

संस्था “यथा नाम तथा गुणो” का पर्याय है। ‘हेल्पिंग हैंड्स’ अर्थात ‘मददगार हाथ’ आज प्राणपण से समाजसेवा में अहर्निश तत्पर हैं। यह सब मैं संस्था से जुड़कर देख पा रहा हूँ। मैं आज केवल संस्था के उद्देश्य “परोपकारी भाव” से संबंधित अपने विचार आप सब के साथ बाँटना चाहता हूँ। उपस्थित विद्वतजनों से 5 मिनट शांति एवं ध्यान चाहूँगा।

महापुण्य उपकार है, महापाप अपकार।

स्वार्थ के दायरे से निकलकर व्यक्ति जब दूसरों की भलाई के विषय में सोचता है, दूसरों के लिये कार्य करता है, वही परोपकार है। इस संदर्भ में हम कह सकते हैं कि भगवान सबसे बड़ा परोपकारी है, जिसने हमारे कल्याण के लिये संसार का निर्माण किया। प्रकृति का प्रत्येक अंश परोपकार की शिक्षा देता प्रतीत होता है। सूर्य और चाँद हमें  प्रकाश देते हैं। नदियाँ अपने जल से हमारी प्यास बुझाती हैं। गाय-भैंस हमारे लिये दूध देती हैं। बादल धरती के लिये झूमकर बरसते हैं। फूल अपनी सुगन्ध से दूसरों का जीवन सुगन्धित करते हैं।

परोपकारी मनुष्य स्वभाव से ही उत्तम प्रवृत्ति के होते हैं। उन्हें दूसरों को सुख देकर आनंद मिलता है।

परोपकार करने से यश बढ़ता है, दुआयें मिलती हैं, सम्मान प्राप्त होता है।

तुलसीदास जी ने कहा है-

‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहीं अधभाई।’

प्रकृति भी हमें परोपकार करने के हजारों उदाहरण देती है जैसे :-

परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः, परोपकाराय वहन्ति नद्यः।

परोपकाराय दुहन्ति गावः, परोपकारार्थं इदं शरीरम् ॥

अपने लिए तो सभी जीते हैं किन्तु वह जीवन जो औरों की सहायता में बीते, सार्थक जीवन है। उदाहरण के लिए किसान हमारे लिए अन्न उपजाते हैं, सैनिक प्राणों की बाजी लगा कर देश की रक्षा करते हैं। परोपकार किये बिना जीना निरर्थक है। स्वामी विवेकानद, स्वामी दयानन्द, गांधी जी, रवींद्र नाथ टैगोर जैसे महान पुरुषों के जीवन परोपकार के जीते जागते उदाहरण हैं। ये महापुरुष आज भी वंदनीय हैं।

न्यूटन के गति का  तीसरा नियम भी कहता है:-

For every action, there is an equal and opposite reaction.

ठीक वैसे ही कर्म का फल भी मिलता है अर्थात- जैसी करनी, वैसी भरनी।

यों रहीम सुख होत है, उपकारी के संग।

बाँटनवारे को लगे, ज्यों मेहंदी को रंग ॥

जब कोई जरूरतमंद हमसे कुछ माँगे तो हमें अपनी सामर्थ्य के अनुरूप उसकी सहायता अवश्य करना चाहिए। सिक्खों के गुरू नानकदेव जी ने व्यापार के लिए दी गई सम्पत्ति से साधु-सन्तों को भोजन कराके परोपकार का सच्चा सौदा किया।

एक बात और है। परोपकार केवल आर्थिक रूप में नहीं होता; वह मीठे बोल बोलना, किसी जरूरतमंद विद्यार्थी को पढ़ाना, भटके को राह दिखाना, समय पर ठीक सलाह देना, भोजन, वस्त्र, आवास, धन का दान कर जरूरतमंदों का भला कर भी किया सकता है।

पशु और पक्षी भी अपने ऊपर किए गए उपकार के प्रति कृतज्ञ होते हैं। फिर मनुष्य तो विवेकशील प्राणी है। उसे तो पशुओं से दो कदम आगे बढ़कर परोपकारी होना चाहिए। परोपकार अनेकानेक रूप से कर आत्मिक आनन्द प्राप्त किया जा सकता है। जैसे-प्यासे को पानी पिलाना, बीमार या घायल व्यक्ति को अस्पताल ले जाना, वृद्धों को बस में सीट देना, अन्धों को सड़क पार करवाना, गोशाला बनवाना, चिकित्सालयों में अनुदान देना, प्याऊ लगवाना, छायादार वृक्ष लगवाना, शिक्षण केन्द्र और धर्मशाला बनवाना परोपकार के ही रूप हैं।

आज का मानव दिन प्रति दिन स्वार्थी और लालची होता जा रहा है। दूसरों के दु:ख से प्रसन्न और दूसरों के सुख से दु:खी होता है। मानव जीवन बड़े पुण्यों से मिलता है, उसे परोपकार जैसे कार्यों में लगाकर ही हम सच्ची शान्ति प्राप्त कर सकते हैं। यही सच्चा सुख और आनन्द है। ऐसे में हर मानव का कर्त्तव्य है कि वह भी दूसरों के काम आए।

उपरोक्त तथ्यों से आप सबको अवगत कराने का मेरा केवल यही उद्देश्य है कि यदि हमें ईश्वर ने सामर्थ्य प्रदान की है, हमें माध्यम बनाया है तो पीड़ित मानवता की सेवा करने हेतु हमें कुछ न कुछ करना ही चाहिए और सच कहूँ तो इसके लिए संस्कारधानी में हेल्पिंग हैंड्स से अच्छा और कोई दूसरा विकल्प हो ही नहीं सकता।

अंत में मैं अपने इस दोहे के साथ अपनी बात समाप्त करना करना चाहता हूँ।

किसलय जग में श्रेष्ठ है, मानवता का धर्म।

अहम त्याग कर जानिये, इसका व्यापक मर्म।।

संस्था की सफलता एवं सार्थकता हेतु मंगलभाव एवं सभी का धन्यवाद।

 

साभार – डॉ. विजय तिवारी ‘किसलय’ 

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संस्था के सदस्यों के निःस्वार्थ समर्पण की भावना को देखते हुए हमें यह संदेश प्रचारित करना चाहिए कि व्यर्थ खर्चों पर नियंत्रण कर भिक्षावृत्ति को  हतोत्साहित करते हुए ऐसी संस्था को तन-मन-धन से  सहयोग करना चाहिए जो ‘अर्थ ‘की अपेक्षा समाज को विभिन्न रूप से सेवाएँ प्रदान कर रही है । हम आप सबकी ओर से श्री अरोरा जी एवं  संस्था के सभी  समर्पित सदस्यों का हृदय से सम्मान करते हैं  जो अपने परिवार  एवं  व्यापार/रोजगार/शिक्षा (छात्र  सदस्य)  आदि दायित्वों  के साथ मानव धर्म को निभाते हुए  समाज  के असहाय सदस्यों की सहायता करने हेतु तत्पर हैं।  

(अधिक जानकारी  एवं हैल्पिंग हेण्ड्स – फॉरएवर वेल्फेयर सोसायटी  से जुडने के लिए आप श्री देवेंद्र सिंह अरोरा जी से मोबाइल 9827007231 पर अथवा फेसबुक पेज  https://www.facebook.com/Helping-Hands-FWS-Jabalpur-216595285348516/?ref=br_tf पर विजिट कर सकते हैं।)

(हम  ऐसी अन्य सामाजिक एवं हितार्थ संस्थाओं की जानकारी अभिव्यक्त करने हेतु कटिबद्ध हैं ।  यदि आपके पास ऐसी किसी संस्था की जानकारी हो तो उसे शेयर करने में हमें अत्यंत प्रसन्नता होगी।)

 

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Vijay Tiwari Kislay

आभार आपका और आपके द्वारा नियमित रूप से प्रेरक, सामयिक, सार्थक रचनाओं एवं आलेखों का e-abhiyakti. com में प्रकाशित करने हेतु।
नियमित पाठक संख्या में वृद्धि भी आपके प्रयासों के सुफल का प्रमाण है