श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 155 – गुरूकृपा योग ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

सौभाग्ये लाभला।

गुरूकृपा योग।

सरतील भोग।

जन्मांतरी।।१।।

 

प्रेमे बाळकडू।

पाजते माऊली।

संस्कार सावली।

आद्यगुरू।।२।।

 

जीवनाचा वारू।

सावरण्या दृष्टी।

संगे प्रेमवृष्टी।

पितृछत्र।।३।।

 

ज्ञान विज्ञानाची।

उजळली ज्योत।

ज्ञानमयी स्रोत।

गुरूजन।।४।।

 

बहुव्यासंगी ते।

माझे गुरूजन।

ठेवा ज्ञानधन।

दिधलासे।।५।।

 

ज्ञान मकरंद।

असे चराचरी।

मधुमक्षी परी।

ध्येय हवे।।६।।

 

अनंत स्वरुपे।

गुरू माऊलीची।

वाट प्रकाशाची।

नित्य दावी।।७।।

 

गुरूपदी हवी।

श्रद्धा भक्ती खरी।

तेव्हा मुक्ती चारी

साधतील।।८।।

 

गुरूकृपा योग।

परीस दुर्लभ।

जीवन सुलभ।

सर्वार्थाने।।९।।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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