मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ अनुबंध… ☆ सुश्री वृंदा (चित्रा) करमरकर ☆

सुश्री वृंदा (चित्रा) करमरकर

? कवितेचा उत्सव ?

☆ अनुबंध 💦 सुश्री वृंदा (चित्रा) करमरकर ☆

अनुराग तुझा नी माझा|

कि बंध हा रेशमाचा |

जो कधी न तुटायाचा|

विश्वास मनी मम साचा|१|

 

शत चांदण्या या  वेचून|

तव केशकलापी माळून|

केतकीच्या गंधात भिजून|

गेलो तव नजरेत गुंतून|२|

 

मध भिजल्या चांदणराती|

जागल्या धुंद त्या किती!

 तव मलमली तनूवरती|

नक्षत्रे सजली तरी किती!

|३|

 

श्वासात श्वास मिसळून|

स्वप्न नयनी हे रेखून |

किती रंगबावरे होऊन|

अनुबंध आले हे जुळून|४|

 

अचानक काय हे घडले|

मम मनाची झाली शकले |

संशय का मनी हे आले|

प्रीतीचे फूल कसे सुकले?

|५|

 

बंध असे तुटून जरी गेले|

आशेचे मनी या इमले|

ते सजवाया परी आपुले|

वळतील तुझी पाऊले |६|

 

मज भासतेस तू जवळी|

येशील अधिऱ्या वेळी|

प्रीतीचासागरउसळी

अनुरक्त गोजिरी कळी|७||

© वृंदा (चित्रा) करमरकर

सांगली

मो. 9405555728

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈