श्री अरुण कुमार दुबे
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “अब शाखे गुलिस्ता पै नहीं एक भी पत्ता…“)
☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 77 ☆
अब शाखे गुलिस्ता पै नहीं एक भी पत्ता… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆
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इख़्लास की नायाब सदा ढूंढ रहा हूँ
पागल हूँ जमाने में वफ़ा ढूंढ रहा हूँ
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बारूद के ढेरों पै लिए हाथ में मश्अल
महकी हुई पुर कैफ़ फ़ज़ा ढूंढ रहा हूँ
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मैं तेरी जुस्तज़ू में भटकता हूँ जा-ब-जा
दुनिया समझ रही है ख़ुदा ढूंढ रहा हूँ
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दुनिया है कि सुख चैन से महरूम हुई है
इक मैं हूं कि मदहोश अदा ढूंढ रहा हूँ
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दफ़्तर में घिरी रहती है अग्यार से हरदम
मैं उसकी निगाहों में हया ढूंढ रहा हूँ
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अब शाखे गुलिस्ता पै नहीं एक भी पत्ता
नादान हूँ बुलबुल की सदा ढूंढ रहा हूँ
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अब कृष्ण सुदामा की कहाँ मित्रता अरुण
मैं व्यर्थ ही अब ऐसे सखा ढूंढ रहा हूँ
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© श्री अरुण कुमार दुबे
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