श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। अब आप प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकते हैं यात्रा संस्मरण – गंगा-सागर यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – गंगा-सागर यात्रा – गंगा सागर – भाग-४ ☆ श्री सुरेश पटवा ?

गंगा सागर द्वीप पर बत्तीस किलोमीटर लंबाई में और तीन से सात किलोमीटर चौड़ाई में 12.26 वर्ग किलोमीटर चौबीस गावों की सवा दो लाख आबादी बसी है। काचुबेरिया जेटी पर नाव से उतरते ही टैक्सी वाले हम पर मधुमक्खियों की तरह झूम पड़ते हैं। पश्चिम बंगाल टूरिज्म प्रॉपर्टी में हमारी कॉटेज बुक है। टैक्सी चालक वहाँ तक का 1600/- माँगने लगे। हम उनसे बातें करते आगे बढ़ते गए। अंदाज़न पाँच सौ मीटर चलने पर ऑटो और टोटो दिखे। हल्के फुलके नये इलेक्ट्रिक वाहन को यहाँ टोटो बुलाने लगे हैं। बत्तीस किलोमीटर की लंबाई के हिसाब से टोटो थोड़े कमजोर लगे। भोपाल की भारी सवारी और वाहन में कुछ तो तालमेल होना चाहिए। ऑटो वाले पाँच-छै सौ रुपयों का अड़ियल राग छेड़े थे। हमने हिसाब लगाया कि ऑटो पचास रुपये प्रति सवारी लेकर आठ सवारी बस स्टैंड तक ले जा रहे हैं। उसके हिसाब से पूरे ऑटो के चार सौ ठीक है। हमने चार सौ की विलंबित धुन पकड़ ली। आख़िर चार सौ रुपयों में सौदा तय हुआ। हमारी शर्त थी कि वह हमें होटल तक छोड़ेगा। यह सुनकर वह पसरने लगा। उसके तीन-चार साथियों ने उसे होटल का पता समझाया, तब वह माना।

गंगा सागर द्वीप पर उत्तर से दक्षिण सीधी सड़क है। दोनों तरफ़ क़तार से कच्चे मकान बने हैं। कमोबेश पूरा बंगाली समाज मांसाहारी है। हर मकान के सामने या बाजू में एक सरोवर है जिसमें मछलियाँ पली हैं। ताजी मछलियाँ पकड़ते और खाते हैं। प्रत्येक घर के सामने बकरियाँ चर रही और देशी मुर्गियाँ फुदक रही हैं। एक बंगाली बुद्धिजीवी से मांसाहार पर बात हुई। उनका कहना था कि मनुष्य यदि सीफ़ूड (समुद्री भोजन) न खाएँ तो समुद्री जीव की प्रजनन क्षमता इतनी अधिक है, सप्त समुद्र उनकी हड्डियों से नमक के ढेर में बदल जाएँगे। तब बारिश के बादल नहीं बनेंगे और कहीं भी बारिश नहीं होगी। पृथ्वी चटकने लगेगी। जल भूमिपिंड को साधे है जल की न्यूनता में वह पिंड खंड-खंड हो जाएगा। ज़रा सोचिए कितनी बड़ी समस्या होगी। शाकाहार या मांसाहार जीव मात्र की स्वाभाविक भोजन प्रणाली है। हमने कहा उत्तर भारत में शाकाहार पर जोर दिया जाता है। उन्होंने कहा- वहाँ वैष्णव जीवन पद्धति है। शाक्तों में मांसाहार चतुर्वर्ण्य प्रमुख भोजन है। कोई परहेज़ नहीं है। पूजा में मछली रखी जाती है।

गंगा सागर में पश्चिम बंगाल टूरिज्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन की बेहतरीन पक्की कांक्रीट हट उपलब्ध हैं। जिनका आरक्षण भोपाल से करवा कर चले थे। तक़रीबन चार सौ वर्ग फ़िट में एक बड़ा शयन कक्ष और एक बड़ा सिटआउट वरांडा, दोनों में एसी और दोनों में पश्चिमी गुसलखाना हैं। तीन दिन रुके, एसी बंद नहीं हुए। कमरे से बाहर भट्टी धधक रही है। सागर द्वीप के चारों तरफ़ सूर्य की तीखी किरण समुंदर में भाप से मानसूनी बादल बनाने में लगी हैं। इस तरह समझ लीजिए कि एक महा भगोने में तेज आँच पर पानी उबल रहा है और आप ढक्कन पर धरे पसीना बहा रहे हैं। सुबह बंगाली अख़बार कमरे में आ गया। तीन चार हेडिंग्स ही समझ आईं। लिपि देवनागरी है। शब्दों के हाथ, पैर, सिर, धड़ और मात्राओं में हिंदी से कुछ थोड़ा भेद है। कुछ महीने रुक गए तो बंगाली अख़बार पढ़ने लायक़ हो जाएँगे। लेकिन फिर काले जादू का क्या होगा। उससे बचना होगा। ग़ालिब तो नहीं बच पाये थे।

पश्चिम बंगाल के दक्षिण चौबीस परगना जिले में स्थित गंगा सागर धार्मिक महत्व का स्थान है। पवित्र जल धाराओं के मिलन स्थान को प्रयाग कहा जाता है। हर साल गंगा सागर मेला इस सागर द्वीप के दक्षिणी छोर पर भरता है जहाँ से गंगा नदी बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करती है। इसी प्रयाग को गंगा सागर का नाम दिया गया है।

प्रयाग कुम्भ मेले के बाद गंगा सागर सबसे बड़ा तीर्थ है। गंगासागर का मिथक जीवन और मृत्यु के चक्र और मोक्ष के आकर्षण के बीच की कड़ी है। इस भक्तिपूर्ण नियति का हृदय प्रतिष्ठित कपिल मुनि मंदिर है। भागवत पुराण में विष्णु के कुल 24 अवतार बताए गए हैं। जिनमें से 23 हो चुके हैं। एक कल्कि अवतार होने को है। कपिल मुनि पाँचवें अवतार माने जाते हैं। जिन्होंने सांख्य सिद्धांत प्रतिपादित किया था कि आत्मा अनादि अनंत है। आत्मा पूर्व निर्धारित नियति के बंधन में है। जीव के कर्म उसका प्रारब्ध निर्धारित करते हैं। भागवत पुराण के अनुसार, महर्षि कपिल मुनि का जन्म स्वयंभू मनु की पुत्री ऋषि कर्दम और देवहुति से हुआ था। कर्दम मुनि ने अपने पिता भगवान ब्रह्मा के वचनों का पालन करते हुए समर्पणपूर्वक घोर तपस्या की। उनके समर्पण से प्रसन्न होकर, भगवान विष्णु अपने दिव्य रूप में प्रकट हुए। भगवान ने उन्हें देवहुति से विवाह करने के लिए कहा और आश्वस्त किया कि वह एक अवतार के रूप में जन्म लेंगे और दुनिया को सांख्य दर्शन देंगे।

समय बीतने के साथ मिथक किंवदंतियों में, किंवदंतियाँ क़िस्सों में और क़िस्से आस्था में बदल गए। वही आस्था कर्मकाण्डी धर्म का प्राण है। राजा भागीरथ के नाम पर गंगा को भागीरथी नाम दिया गया और राजा सागर के नाम पर समुद्र को “सागर” नाम दिया गया और गंगा के सागर में मिलन को गंगा सागर।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गंगा को लोक कल्याण हेतु 2525 किलोमीटर प्रवाहित होकर ग्रहण करने हेतु भगवान विष्णु कपिल मुनि के रूप में आए थे। उन्होंने इस स्थान पर अपना आश्रम बनाया और ध्यानस्थ हो गए। इसी दौरान पृथ्वीलोक पर प्रतापी इक्ष्वाकु वंशीय राजा सागर काफी पुण्य कमा रहे थे। इंद्र को अपनी गद्दी हिलती दिखने लगी। इंद्र ने एक चाल चली। राजा सागर का यज्ञ अश्व चुरा कर कपिल मुनि के आश्रम के पास बांध दिया। राजा सागर ने अपने  पुत्रों को उस अश्व को ढूँढ लाने के लिए भेजा। जब राजा सागर के पुत्रों को अश्व कपिल मुनि के आश्रम के पास मिला, उन्होंने कपिल मुनि पर चोरी का आरोप लगाया। इंद्र की चाल से अनजान कपिल मुनि इस झूठे आरोप से क्रोधित हो गए और उन्होंने राजा सागर के सभी पुत्रों को भस्म कर दिया। जब कपिल मुनि को असल बात पता चली तो वे अपना श्राप वापस तो ले नहीं सकते थे पर उन्होंने राजा सागर के पुत्रों को मोक्ष दिलाने का उपाय बताया। अगर गंगा धरती पर जल के रूप में अवतरित हो राजा सागर के पुत्रों की अस्थियों को स्पर्श कर लेती हैं तो हिन्दू मान्यताओं के अनुसार उनकी अंतिम क्रिया पूरी हो जाएगी और वो मोक्ष प्राप्त कर स्वर्गलोक को चले जाएँगे। राजा सागर के पुत्रों को मोक्ष दिलाने के लिए उनके कुल में जन्मे राजा भगीरथ ने घोर तपस्या की ताकि माता पार्वती धरती पर आ जाएँ।  अंततः पार्वती देवी गंगा के रूप में पृथ्वी पर उतरीं और उनके स्पर्श से राजा सागर के पुत्रों को मोक्ष प्राप्त हुआ। हिन्दू पंचांग के अनुसार गंगा के धरती पर आकर सागर में समाने की तिथि उत्तरायण या मकर संक्रांति पर होती है। इसलिए लाखों लोग इस दिन गंगासागर में स्नान करते हैं ताकि वे स्वर्ग प्राप्त कर सकें।

इस पौराणिक कथा में आस्था रखते हुए दुनिया भर से मोक्ष की तलाश में लाखों हिंदू तीर्थयात्री मकर संक्रांति पर गंगासागर मेले में आते हैं। माना जाता है कि पवित्र जल में डुबकी लगाने से सभी दुख और पाप धुल जाते हैं। इस विश्वास के साथ लाखों लोग कपिल मुनि के आश्रम में “सब तीर्थ बार बार गंगा सागर एकबार” का जाप करते पुण्य कमाते हैं।

गंगा सागर एक अद्भुत द्वीप है जो बंगाल तट से कुछ ही दूर स्थित है। गंगा सागर गंगा नदी और बंगाल की खाड़ी का मिलन बिंदु है। बताया जाता है कि काफी समय पहले गंगा नदी की धारा सागर में यहीं मिलती थी, लेकिन नदियों के तलछट ने किनारों को पूर दिया है। अब इस द्वीप के पास गंगा की बहुत छोटी सी धारा सागर से मिलती है।

यह द्वीप लार्ड क्लाइव को इसलिए पसंद था कि ईस्ट इंडिया कंपनी की फ़ौज सिराजुद्दौला से शिकस्त खाकर इसी स्थान पर डेरा डाले पड़ी थी। क्लाइव ने प्लासी की लड़ाई की तैयारी इसी द्वीप पर की थी, और गंगा के मुहाने से ही गहरे समुद्र तक पहुँच जहाँ लंगर डाला, वह स्थान बाद में डायमंड हार्बर नाम से प्रसिद्ध हुआ। उसकी फ़ौज  इसी रास्ते से हुगली अर्थात् गंगा पर जहाज़ चलाकर 11 जून 1757 की रात को प्लासी के मैदान तक पहुँचा था। 13 जून 1757 को उसने भारत के भाल पर “ग़ुलाम” लिख दिया था।

संत कपिल मुनि को समर्पित मंदिर सागरद्वीप का प्रमुख आकर्षण है। तीर्थयात्री पानी में एक डुबकी के बाद मंदिर जाते हैं। मुख्य मंदिर 1960 के तूफान में नष्ट हो गया था। गंगासागर में 1973 में कपिल ऋषि का मंदिर फिर से बनवाया गया। कपिल मुनि की मूर्ति के एक तरफ राजा भगीरथ को गोद में लिए हुए गंगा जी की मूर्ति स्थापित है वहीं दूसरी तरफ राजा सगर और हनुमानजी की मूर्ति है।

यहां आना हर किसी के भाग्य में नहीं होता, जो यहां तक पहुंच जाता है उसे भाग्यशाली माना जाता है। यहां का गंगा सागर मेला पूरे भारत वर्ष में प्रसिद्ध है। हर साल इस मेले में लाखों श्रद्धालु पुण्यस्नान के लिए आते हैं। यहां तीर्थयात्री संगम में स्नान कर सूर्य को अर्घ देते हैं। कपिल मुनि के साथ ही यहां श्रद्धालु सूर्य देव की भी पूजा करते हैं। यहां श्रद्धालुओं द्वारा तिल और चावल का दान दिया जाता है। यहां इस दौरान नागा साधुओं के साथ महिला सन्यासी भी नजर आती हैं। ये नजारा पूरी तरह कुंभ जैसा लगता है। यहां श्रद्धालु समुद्र देवता को नारियल अर्पित करते हैं, वहीं गौदान भी किया जाता है। इसके बाद बाबा कपिल मुनि के दर्शन किए जाते हैं।

क्रमशः…

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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