श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 165 ☆

☆ मुक्तक – ।। अब हम देख कर मुस्कराते हैं, हमने मुस्करा कर देखना छोड़  दिया है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

=1=

हम सबनें ही अब बतियाना, छोड़ दिया है।

अब वैसा याराना  निभाना, छोड़ दिया है।।

छोड़ दिया है बिना कुंडी, बजाए  आ  जाना।

निकल के पास से आंखें, मिलाना छोड़ दिया है।।

=2=

आंगन धूप में अब, बैठ जाना छोड़ दिया है।

यूं ही  दुआ सलाम, का बहाना छोड़ दिया है।।

छोड़ दिया करना हमनें, चरणस्पर्श बड़ों का।

पड़ोसी का धर्म भी निभाना, छोड़ दिया है।।

=3=

बच्चों को अब संस्कार, सिखाना छोड़ दिया है।

लोरी गाकर बच्चों को, सुलाना छोड़ दिया है।।

हर बाल बच्चे के हाथ में, मोबाइल दिया पकड़ा।

बच्चों ने मां बाप से, डर जाना छोड़ दिया है।।

=4=

सुबह जल्दी उठ जाना, अब छोड़ दिया है।

मंदिर रोज हाथ जोड़ के, आना छोड़ दिया है।।

फास्ट जंकफूड पसंद, हो गए हमारी पहली।

रविवार घर में खाना, बनाना छोड़ दिया है।।

=5=

हमने बेवजह अब गले, लगाना छोड़ दिया है।

हर छोटी बड़ी बात को, भुलाना छोड़ दिया है।।

बदल के रख दिए हैं सब, तौर तरीके जमाने के।

घरों मेंअब मेहमानों को, बुलाना छोड़ दिया है।।

=6=

घर आंगन में तुलसी का लगाना, छोड़ दिया है।

बिन तोल मोल भाव रिश्ते, निभाना छोड़ दिया है।।

अब हम देखकर बस, मन ही मन मुस्काते हैं।

अब हमने मुस्करा कर, दिखाना छोड़ दिया है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments