डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण गीत –बिछल रही है चाँदनी…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 163 – गीत – बिछल रही है चाँदनी…
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लहर लहर में चाँद बिछलता, बिछल रही है चाँदनी।
मन की नाव लिये जाती है जहाँ कल्पना कामिनी।
मंद मंद स्वर सुन पड़ते हैं
मोहक मंदिर रसीले
रून झुन की धुन कर देती है
देहबन्ध भी ढीले
देहराग को ढाल आग में छेड़ रही है यामिनी
दाहक मारक रूप ज्वाल से
उठती ठंडी ज्वाला
आँखों आँखों पीने पर भी
थके न पीनेवाला।
उन्मन उन्मन मन करती है उन्मत् सी उन्मादिनी ।
चंदा कहाँ चाँदनी कैसी
सब है मन का मेला
मन मोती को खोज रहा है
सागर बीच अकेला।
नदी नाव संयोग हमारा सुनती हो सौदामिनी ।
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
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