श्री हरभगवान चावला

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं  में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा  लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।) 

आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा मालिक)

☆ लघुकथा – मालिक… ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

उसे पहला वेतन मिला। उसने एक दुकान से कुछ खिलौने ख़रीदे। उन खिलौनों में एक मख़मल सा मुलायम टैडी बियर था; एक उड़न तश्तरी थी, जो चलते हुए कुछ देर हवा में उड़ती थी; एक बैट्री-चालित कार थी; एक गेंद थी, जो टप्पा खाकर इतनी उछलती थी कि जैसे आसमान छू लेगी। उसने सब खिलौनों पर बहुत नज़ाकत और मुहब्बत से हाथ फिराया। मुझे मालूम था कि अभी उसकी शादी नहीं हुई है। ज़ाहिर था कि उसने ये खिलौने अपने परिवार के किसी बच्चे के लिए ख़रीदे हैं, लेकिन एक साथ इतने महँगे चार खिलौने! ज़रूर वह उस बच्चे से बहुत प्यार करता होगा। मैं अपनी उत्सुकता को दबा नहीं पाया और पूछ लिया, “क्या मैं यह जान सकता हूँ कि वह ख़ुशक़िस्मत बच्चा कौन है जिसके लिए तुमने इतने सारे खिलौने खरीदे हैं?”

वह मुस्कुराया और कहा, “मैं।”

“क्या?” मैं चौंक गया।

“हाँ मैं, तुम शायद नहीं जानते कि मैं कभी नए खिलौनों से नहीं खेला। अमीर बच्चे जिन खिलौनों से ऊबकर उन्हें फ़ालतू क़रार दे देते थे, वे खिलौने कृपापूर्वक मेरे पिता को दे दिए जाते थे। मेरे पिता कुछ कोठियों में माली का काम करते थे। मैं कभी नई किताबों से भी नहीं पढ़ा, न कभी नए कपड़े पहने। मेरे खिलौने और बच्चों द्वारा फेंक दिया गया कबाड़ थे, कपड़े किसी की उतरन थे, किताबें किसी के द्वारा इस्तेमाल की जा चुकी रद्दी थीं। आज मैं इन खिलौनों का मालिक हूँ।” उसने खिलौनों का पैकेट उठाया और कहा, “चलो यार, अभी तो मुझे नए कपड़ों और नई किताबों की ख़ुशबू और स्पर्श को महसूस करना है!”

©  हरभगवान चावला

सम्पर्क – 406, सेक्टर-20, हुडा,  सिरसा- 125055 (हरियाणा) फोन : 9354545440

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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